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१३८ . भास्व याम् ।
सं० टी०-हिमांशोश्चन्द्रस्याग्निहीना वह्निरहिताग. तिर्हिमांशोः मानं भवति, इदं दशग्नं दिग्भिर्गुणितं चतुभिर्विभाजितं तम प्रमाणं राहुमानं भवति तद्योगतो. ऽई मानयोर्योगाई शरवर्जितं च सुधांशोः चन्द्रस्य स्फुटपर्वसन्धौ ग्रासःस्फुटः स्पष्टः स्यात् ॥ २ ॥ “छादयत्यर्कमिन्दुर्विधं भूभिभा
छादकछाद्यमानैक्यखण्डं कुरु । तच्छरोनं भवेच्छन्नमेतद्यदा
ग्राह्य हीनावशिष्टं तु खच्छन्नकम्" ॥ १ ॥ भा० टी०-चन्द्रमा की गति में ३ घटाने से चन्द्रमान होता है । चन्द्रमान को १० से गुणि के उसमें ४ का भाग देने से जो फल मिलै वह तमोमान होता है । चन्द्र-राहु मान के योग के आधे में शर घटाने से ग्राश होता है । (न घटै तो ग्रहण नहीं लगेगा यह जानै ) ॥२॥
उदाहरण-चन्द्रमा की गति १०२ में ३ को घटाया तो चन्द्रमान ९९ हुआ । चन्द्रमान ९९ को १० से गुणो तो ९९० हुए इसमें ४ का भाग देने से फल तमोमान २४७ । ३० हुआ । चन्द्रमा के मान का और राहु के मान का योग किया तो ३४६ । ३० हुए इस का आधा किया तो योगार्द्ध १७३१ १५ हुआ इस में शर १३२ । ७ । ५४ को घटाया तो ग्रास. ४१ । ७ । ६ हुआ ॥ २ ॥
_ स्थित्य स्पर्श-मध्य मोक्षकालविधयःस्थित्यर्द्धमङ्गाहतभिन्दुखएडम्
खपञ्चयुक्खण्डफलं विमर्दम् ।
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