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चन्द्रग्रहणाधिकारः। से जो शेष वचै वह और पूर्व शेष इन दोनों में जो न्यून होय उसको अपने दशांश से हीन करने से स्पष्टशर होता है ॥१॥
उदाहरण-श्रीसंवत् १९६९ शाका १८३४ चैत्रशुक्ल पूर्णिमा के दिन चन्द्र ग्रहण का साधन करते हैं ।
सूर्य २६१३।३०।२५ को दुना किया तो । ५२२७। ०। ६० हुआ, पर्वकाल ५३ घटी २३ पल में चार का भाग दिया तो लब्ध १३।२०४५ मिले, इसको द्विगुणित सूर्य ५२२७।०५० में युत किया तो पर्वकाल संस्कारित द्विगणित सूर्य ५२४०।२१।३९ हुआ। दिनगण ३५३ को ८ से गुणा तो २८२४ हुए इस में १० का भाग देने से फल २-२१२४० मिले इसके राहु के ध्रुवा ५१३०।२५।२९ में युत किया तो तत्कालिक राहु ५४१२॥ ४९३९ हुआ । पर्व काल संस्कारित द्विगु . णीत सूर्य ५२४०।२१३५ है इस में राहु ५४१२। ४९।३९ को युत किया तो राहु युत पर्व काल संस्कारित सूर्य १०६५३।११।१४ हुआ, इसमें २७०० का भाग दिया तो फल ३ मिले इससे योग्य शर हुआ शेष २५५३।११।१४ बचे इसको २७०० में हीन किया तो शेष १४६।१८।४६ बचे इन दोनो शेषों में दूसरा शेष १४६ ४८१४६ न्यून है अतः इसमें इसके दशमांश १४।४।५२ को घटाया तो स्पष्टयाम्य शर १३२।७।५४ हुआ ॥१॥
चन्द्र राहु मान ग्रास विधयःमानं हिमांशोर्गतिरग्निहीना
द्विग्नं चतुर्भिश्चतमः प्रमाणम् । तयोगतोऽहंशरवर्जितं च। ___ग्रासःसुधांशोः स्फुटपर्वसन्धौ ॥२॥ १८
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