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भास्वत्याम् ।
इह तावति भास्करे क्रमाद् घटजोऽस्तादयं च गच्छते"॥१॥ "चन्द्रशृङ्गोन्नतिज्ञानम्
मीने मेषे गतश्चन्द्रः सततं दक्षिणोन्नतः ।
अन्येषूत्तर शृङ्गं स्यात् समं च वृषकुम्भयोः"॥१॥ भा० टी०-पलभाको ३२ से गुणि उस में ९०० को मिलावे फिर उसको ८ से गुणि ६० का भाग देने से अंशादि फल मिलते है, उसमें ३० का भाग देने से जो राशि आदि मिलै उसके समान मूर्यकी राशि आदि होने पर दक्षिण में देवता के शत्रुयोंके नाश करने वाले अगस्त्य मुनिजी उदय होते हैं । ( आठ से गुणि कर साठ का भाग लेना एह सूर्य की स्पष्ठी से अनुवर्तन किया जाता है। ॥२०॥
उदाहरण-श्री काशीजी की पलभा ५ । ४५ को ३२ से गुणा किया तो १८४ । • हुए इसमें ८०० को मिलाया तो १०८४० हुए फिर इसको.८ से गुणा तो ८६७२ । • हुए इसमें ६० का भाग दिया तो फल अंशादि १४४ । ३२ मिले, अंशा १४४ में ३० का भाग दिया तो ४ । २४ । ३२ हुए, सिंह राशि के २४ अंश ३२ कला पर श्री १०८अगस्त्य जी का उदय स्पष्ट हुआ ॥ २२ ॥
इति श्रीज्योतिषीन्द्रमुकुट मणि श्रीछत्रधर सूरिमूनुना गणकमातृप्रसाद विरचितायां भास्वत्याः छात्रवोधिनीनाम
टीकायां ग्रहस्पष्टाधिकारश्चतुर्थः ।।४।।
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