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त्रिप्रश्नाधिकारः ।
त्रिप्रश्नाधिकारः । अयनांश विधिः
शकेन्द्र कालात्खशराब्धिहीनात् षष्ट्याप्तशेषे ह्ययनाशकाः स्यु | अहर्गणं तैर्युतमेव कुर्याद् भवेद् द्युवृन्दं द्युनिशोः प्रमाणे ॥ १ ॥
सं० टी० - खशराब्धि हीनात्सार्द्ध चतुरशतै रहि ताच्छ केन्द्र कालाच्छकेन्द्र समयात् षष्ट्याप्तशेषे अयनांशकाः स्युः, तैरयनांश कैरहर्गणं दिनगणं युतं मिलितमेव कुर्य्याद् युनिशोः प्रमाणे धुवृदं दिन रात्रि मान ज्ञानार्थ सायनाख्य दिन गणं भवेत् ॥ १ ॥
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भा० टी० - शालिवाहन के वीते हुए शाका में ४५० को घटाकर ६० का भाग देनेसे अयनांशा होता है । अहर्गण को अयनांशा में युक्त करने से दिन रात्रि का प्रमाण जानने के लिये सायन दिन गण होता है ॥ १ ॥
उदाहरण--शाका १८३३ में ४५० को घटाया तो १३८३ हुए, इसमें ६० का भाग देने से अयनांशा २३ । ३ हुआ । इसको दिन गण २७ में युत किया तो सायन दिन गण १० । ३ हुआ ॥ १ ॥
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