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॥अनुभवप्रकाश ॥ पान ६॥ है आवता । भावविना स्वभावका अभाव होता । भाव भावविना अतीतका भाव अना३ गतमें न रहता । भावाभावविना परिणमन समयमात्र न संभवता । अभावभावविना
अनागत परिणमन न आवता । अभावविना कर्मका सद्भाव जान्या परता। सर्वथा । १ अभाव अभावविना अतीतमैं कर्म अभाव था, सो अनागत अभावमैं ऐसा न होता । है है कर्ताविना निजकर्मका कर्ता न होता। कर्मविना स्वभावकर्मका अभाव होता। कर-है है णविना परिणमनकरि स्वरूपका साधन था सो न होता । सम्प्रदानविना परिणति-है १ स्वरूपमैं आप समर्पण न करता । अपादानविना आपतैं आपकरि आप न होता है है अधिकरणविना सबका आधार न होता। स्वयंसिद्धविना पराधीनता आवती । अज-है है विना उपजता । अखण्डविना खण्डितता पावता। विमलविना मल होता । एकविना हैं अनेक होता । अनेकविना गुण अनेकका अभाव होता । नित्यविना अनित्य होता। है अनित्यविना षड्गुणी वृद्धिहानि न होय । जब अर्थक्रियाकारकस्वभावकी सिद्धि न है