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॥ अनुभवप्रकाश || पान ५ ॥
अस्तित्वविना वस्तुत्व किसके आधार कहिये ? प्रदेशत्वविना अस्तित्व किसका निरू पिये ? प्रभुत्वविना प्रदेशप्रभुता कहां रहती ? विभुत्वविना प्रभुत्व सबमैं कैसे व्यापता ? जीवत्वविना विभुत्व अजीव होता, चेतनाविना जीवत्व कहां वर्तता ? ज्ञानविना चेतसर्वज्ञताविना नका विशेष जान्या न परता, दर्शनविना सामान्यविशेषज्ञान न रहता, दर्शन कौन जानता? सर्वदर्शित्वविना ज्ञान कौन देखता ? चारित्रचेतनाविना दर्शनज्ञानकी थिरता कहां रहती ? परिणामात्मकत्वविना चिदचिद्विलास कहांत करता ? अकारणकार्यत्वविना परकार्य भये, निजकार्यको अभाव होता । असंकुचितत्वविना अविनाशी चेतनाविलास संकोच न आवता । त्यागोपादानशून्यत्वविना यहणत्याग लग्या रहता । अकर्तृत्वंविना कर्मका कर्त्ता होता । अभोक्तृत्वविना परभाव भोगवता । असाधारणविना चेतनाचेतनका भेद न परता । साधारणविना कोई पदारथ सत् होता, कोई असत् होता । तत्त्वविना वस्तु स्वरूप न धरता । अतत्त्वविना परका तत्त्व