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॥अनुभवप्रकाश || पान ४॥
है परणवै, वेदै, आस्वाद करै सुखफल निपजै । याही रीति सब गुणकौं परणवै, वेदै, है है आस्वादै आनन्द अनन्त अखण्डित अनुपमरस लीये उपजै । तातें सब गुणका रस है है परिणतिके द्वार अनुभव करवैमें आया । ऐसेंही द्रव्यकों परणवै, वेदै, आस्वादै, है है आनन्द पावै । तब परिणतिद्वारि द्रव्य अनुभव भया । अनुभवका रस गुणपरिणति है १ एकरस भये होय है । वस्तुका स्वरूप है । सो गुण चेतनाका सक्षेपमात्र वर्णन है
कीजिये है।
सकलगुणमैं ज्ञान प्रधान है । काहेत? ज्ञान विशेष चेतना है। ज्ञान सबका है है ज्ञाता है । सूक्ष्म न होता तो इन्द्रियग्राह्य होता । ताः सूक्ष्मकरि ज्ञानकी सिद्धि सत्ता-१ है गुणविना सूक्ष्म सासता न होता। वीर्यगुणविना सत्ताकी निष्पत्तिसामर्थ्य कहां पाईये । है १ अगुरुलघुविना वीर्य हलका भारी भये जडताकौं धरता। प्रमेयगुणविना अगुरुलघुका है हैं प्रमाण कहां पाईये? अप्रमाण भये कौन मानता? वस्तुत्वविना प्रमाण किसका कहिये?