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॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान ३॥ । यह परमैं आपा जानै है, सो यह ज्ञानी निज वानिगी है । इस निजज्ञानवा- है है निगीको बहुत संत पिछानि पिछानि अजर अमर भये, सो कहनेमात्रही न ल्यावै, है है चित्तको चेतनामें लीन करै, स्वरूप अनुभवका विलास सुखनिवास है, ताकौं करै । है है सो कैसे करै सो कहिये हैं॥
निरन्तर अपने स्वरूपकी भावनामैं मग्न रहै, दर्शनज्ञानचेतनाका प्रकाश उपहै योगदारमैं दृढ भावै । चित्परिणतिते स्वरूप रस होय है । द्रव्य गुण पर्यायका यथार्थ है १ अनुभवना अनुभव है। अनुभवतें पञ्च परमगुरु भये होहिंगे। सो प्रसाद अनुभवका है है । अनुभव आचरणकौं अरिहंत सिद्ध सेवै हैं। अनुभवमैं अनन्तगुणके सकल रस है आवै है सो कहिये हैं।
ज्ञानका प्रकट प्रकाश अनन्तगुणकौं जानै । ज्ञान विशेषगुणकौं परिणति परणवै, वेदै, आस्वाद करै । तहां अनुपम आनन्द फल निपजै ऐसेंही दरसनकों परिणति है