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॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान ५४ ॥ तो विकल्प है। ज्ञानका प्रत्यक्षरस वेदना भावनमैं सो अनुभव है । विचारप्रतीतिरूप है है साधक है, अनुभव भावसाध्य है। साधकसाध्यभेद जानै तौ वस्तुकी सिद्धि होय ।। हूँ सो कहिये हैं। १ . साध्यसाधक उदाहरण कहिये हैं । एकक्षेत्रावगाही पुद्गलकर्महीका सहजही है हैं उदय स्थितिको होय है, सो साधक अवस्था जाननी। तहां तवलग तिस हवनेका (?) है है स्थितिस्यौं चित्तविकार हवनेकी (?) प्रवर्तना पाईये है, सो साध्यभेद जानना ॥ मिथ्यात्व है
साधक, बहिरात्मा साध्य है। सम्यग्भाव साधक है, तहां वस्तुस्वभाव जातिसिद्ध है है होना साध्य है। जहां शुद्धोपयोगपरिणति होना साधक है, तहां परमात्मा साध्य है। है व्यवहाररत्नत्रय साधक है, तहां निश्चयरत्नत्रय साध्य है। सम्यग्दृष्टिकौं जहां विरति है है व्यवहारपरिणति हवना साधक है, तहां चारित्रशक्ति मुख्य हवना साध्य है । देव-है है शास्त्र-गुरु भक्ति विनय नमस्कारादि भाव जहां साधक है, तहां विषयकषायादि भाव- है