________________
॥ अनुभवप्रकाश ॥ पान ५५॥
१ नसौं उदासीनता मनःपरिणतिकी स्थिरता साध्य है। जहां एक शुभोपयोग व्यवहा-है रपरिणति हवना साधक है, तहां परम्परामोक्ष साध्य है ॥ ३ जहां अन्तरात्मारूप जीवद्रव्य साधक है, तहां अभेद आपही जीवद्रव्य परमा-है है त्मारूप साध्य है। जहां ज्ञानादिगुण मोक्षमार्गरूपकरि साधक है, तहां अभेद है है आपही ज्ञानादिगुणका मोक्षरूप साध्य है। जहां जघन्य ज्ञानादिभाव साधक है, तहां है है अभेद आपही वेही ज्ञानादिगुणका उत्कृष्टभाव साध्य है | जहां ज्ञानादि स्तोक निश्च-है
यपरिणतिकरि साधक है, तहां अभेद आपही बहुत निश्चयपरिणतिरूप ज्ञानादि गुण हैं साध्य हैं । जहां सम्यक्त्वी जीव साधक है, तहां तिस जीवकै सम्यग्ज्ञानदर्शनचारित्र साध्य हैं । जहां गुणमोक्ष साधक है, तहां द्रव्यमोक्ष साध्य है। जहां क्षपकश्रेणी चढना है साधक है, तहां तद्भवसाक्षान्मोक्ष साध्य है। जहां द्रव्यतें भावतें साक्षात् द्वैतव्यवहार । साधक है, तहां साक्षान्मोक्ष साध्य है। जहां भावितमनादिरीतिविलय (?) साधक है,