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सुखान्वेषण : इतिहास
हम प्रकृत का अनुसरण करें और यह देखें कि हर व्यक्ति दुख की निवृत्ति और सुख की प्राप्ति चाहता है, यह एक दूसरी बात है कि उसके सुख का क्या चित्र उसके मन में है ? कहा जाता है कि एक बार नारद सनत्कुमार के पास पहुंचे और उन्होंने सनत्कुमार से कहा कि मैंने समस्त वेदवेदांग पढ़े हैं, किन्तु मैं दुख से छुटकारा नहीं पा सका। सुनते हैं कि जो अपने स्वरूप को जान लेता है, वह दुख से छुटकारा पा जाता है। आप भी मुझे दुख के पार उतार दें।२ नारद ने वेद और वेदांगों में क्या पढ़ा था कि वह दुख से छुटकारा नहीं पा सका ? उसने वेदों में यह अवश्य पढ़ा होगा कि मैत्री बहुत बड़ा गुण है कि मनुष्य को यह कामना करनी चाहिए कि वह सब के प्रति मैत्रीपूर्ण व्यवहार रखे और सब उसके प्रति मैत्रीपूर्ण व्यवहार रखें। 3 उसने यह भी पढ़ा होगा कि सत्य, तप, ऋत और यज्ञ इस संसार को धारण किये हुए है, कि इस संसार की उत्पत्ति सत्य और तप से हुई कि विद्या से ही अमृतत्व की प्राप्ति होती है,६ अद्भुत बात है कि इतना जान लेने के बाद नारद
१. तरति शोकमात्मवित्-छान्दोग्योपनिषद्, ७.१.३ २. सोऽहं भगवः शोचा मि तं मां भगवञ्छोकस्य पारं तारयत्विति ।
-वही, ७.१.३ ३. यजुर्वेद, ३६.१८ । ४. सत्यं बृहदृतमुग्रं दीक्षा तपो ब्रह्म यज्ञः पृथिवीं धारयन्ति ।
अथर्ववेद, १२.१.१
. ऋतञ्च सत्यञ्चाभीदात्तपसोऽध्यजायत ।
ऋग्वेव, १०.१६०.१
६. विद्ययामृतमश्नुते
ईशोपनिषद्, ११