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भेदसंघातेभ्य उत्पद्यन्ते।।२६।। भेद (भाग करना), संघात (एकत्रित करना) और भेद संघात तीन कारणों से स्कंध पैदा होते हैं।
भेदादणुः।।२७।। अणु भेद से ही होता है संघात से नहीं।
भेदसंघाताभ्यां चाक्षुषः।।२८।। जे नेत्रेन्द्रिय गोचर स्कंध होता है वह भेद और संघात दोनों से ही होता है।
सद्रव्यलक्षणम्।।२९।। द्रव्य का लक्षण सत्ता है।
उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् ।।३०।। जो उत्पत्ति, विनाश और स्थिरता युक्त है वही सत् है।
तद्भावाऽव्ययं नित्यम्।।३१।। जो अपने स्वरूप से नाश को प्राप्त नहीं होता है वही नित्य
है
अर्पितानर्पितसिद्धेः।।३२॥ वस्तु में अनेक धर्म होते हैं। जिसको मुख्य करे सो अर्पित और जिसको गौण करे सो अनर्पित है। इन दोनों नयों से वस्तु की सिद्धि होती है।
स्निग्धरूक्षत्वाद्वन्धः।।३३।।