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जीव और पुद्गलों के चलने में तो धर्म द्रव्य सहकारी है और स्थिति करने में अधर्म द्रव्य उपकारी (सहायक) है, प्रेरक नहीं है।
आकाशस्यावगाहः।।८।। अवकाश अर्थात् जगह देना यह आकाश द्रव्य का उपकार है।
शरीरवाङ्मनः प्राणापानाः पुद्गलानाम् ।।१९।। शरीर, वचन, मन, प्राण-अपान यह पुद्गलों का उपकार है।
सुखदुखजीवितमरणोपग्रहाश्च।।२०।। तथा सुख, दु:ख जीवन, मरण ये उपकार भी पुद्गलों के हैं।
परस्परोपग्रहो जीवानाम्।।२१ ।।
हिताहित स्वरूप परस्पर एक दूसरे का सहायक होना जीवों का उपकार हैं
वर्तमानपरिणामक्रिया परत्वापरत्वे च कालस्य।।२२।।
वर्तना, परिमाण, क्रिया, परत्व और अपरत्व ये पाँच काल के उपकार हैं।
स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः।।२३।। स्पर्श, रस, गंध और वर्ण वाले पद्गल द्रव्य हैं।
शबदबन्धसौक्ष्यसौल्यसंस्थानभेदतम
श्छायाऽऽतपोद्योतवन्तश्च ।।२४।। तथा ये पुद्गल शब्द, बंध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, भेद, अन्धकार, छाया, आतप (धूप), उद्योत (शीतल प्रकाश) सहित है।
अणवस्कन्धाश्च।।२५॥ पुद्गलों के अणु और स्कंध ये दो भेद भी होते हैं।