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आश्चर्य
यक्ष- -' सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ?"
युधिष्ठिर - 'यही कि रोज़ बेशुमार लोग मरते चले जा रहे हैं, फिर भी जीनेवालोंको यह नहीं लगता कि एक रोज़ हमें भी मरना होगा ।'
कल
धर्मराज युधिष्ठिर के पास कोई भिखारी आया । वे उस समय काम में लगे हुए थे; नम्रतापूर्वक बोले- 'भगवन्, आप कल आइए, आपको इच्छित वस्तु दे दी जायेगी । '
भिखारी चला गया । लेकिन भीम उठकर दुन्दुभि बजाने लगे । सेवकोंको भी मंगलवाद्य वजानेकी आज्ञा दे दी । धर्मराजने पूछा - 'आज इस वक़्त खुशी के बाजे क्यों बज रहे हैं ?"
भीम - 'इसलिए कि महाराजने कालको जीत लिया !' युधिष्ठिर ( चकित होकर ) - 'मैने कालको जीत लिया ?"
भीम - 'महाराज ! आपने भिखारीको अभीष्ट दान कल देने को कहा है, इसलिए कम-से-कम कल तक के लिए तो आपने कालको जीत ही लिया है ।' युधिष्ठिर को अपनी ग़लतीका भान हो गया ।
गुण-दर्शन
एक साधु किसी आदमी के साथ कहीं जा रहे थे । रास्ते में एक मरा हुआ कुत्ता मिला जो बिलकुल सड़ गया था । आदमी बोला— 'महाराज ! बचकर चलिए; देखिए इस ग़लीज़ कुत्ते से कैसी बदबू मार रही है !'
साधु बोले- 'अहा ! इस कुत्तेके दाँत कैसे साफ़ और चमकीले हैं !'
सन्त-विनोद
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