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व्यासदेव-'तुम्हें ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास आश्रममें प्रवेश करना चाहिए । तभी मोक्ष प्राप्त हो सकेगा।'
शुकदेव-'अगर ब्रह्मचर्यसे मोक्ष होता हो तब तो नपुंसकोंको वह सदा ही प्राप्त रहता होगा। अगर गृहस्थ आश्रमसे मोक्ष मिलता हो तब तो सारी दुनिया ही मुक्त हो गई होती। अगर वानप्रस्थोंको मोक्ष होती हो तो सभी पश-पक्षी मुक्त हो जायें। अगर संन्याससे मोक्ष मिला करता हो तो सब दरिद्रोंको वह फ़ौरन् मिल जाना चाहिए।'
व्यासदेव-'सद्गृहस्थोंके लिए लोक-परलोक दोनों सुखद होते हैं। गृहस्थका संग्रह हमेशा सुखदायक होता है ।'
शुकदेव-'यह तो हो सकता है कि सुरजसे बर्फ गिरने लगे, चन्द्रमासे ताप निकलने लग जाय; लेकिन परिग्रहसे कोई सुखी हो जाय यह तो त्रिकालमें भी संभव नहीं है।'
__व्यासदेव-'बालक जब धूलमें लिपटा, तेज़ चलता और तोतली वाणी वोलता है तब वह सबको अपार आनन्द देता है।'
शुकदेव-'धूलमें लोटते हुए अपवित्र शिशुसे सुख या संतोषकी प्राप्ति सर्वथा अज्ञानमूलक है। उसमें सुख माननेवाले अज्ञानी हैं।'
व्यासदेव-'पुत्रहीन आदमी नरक जाता है।' __ शुकदेव-'अगर पुत्रसे ही स्वर्ग मिल जाया करता तो सूअरों, कुत्तों और टिड्डियोंको तो वह खास तौरसे मिलता।'
व्यासदेव-'पत्रके दर्शनसे मनुष्य पित-ऋणसे मुक्त हो जाता है। पौत्र-दर्शनसे देव-ऋणसे मुक्त हो जाता है और प्रपौत्र के दर्शनसे उसे स्वर्गकी प्राप्ति होती है।'
_शुकदेव-'गोधोंकी बड़ी लम्बी उम्र होती है। वे अपनी कई पोढ़ियाँ देखते हैं। पौत्र, प्रपौत्र तो मामूली चीजें हैं उनके लिए। पर पता नहीं उनमेसे अब तक कितनोंको मोक्ष मिला ।' ___यह कहते हुए शुकदेवजी वनमें चले गये।
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सन्त-विनोद