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अधिकार एक आलीशान दूकानके सामने अनाजकी ढेरी लगी थी। एक बकरा आया। उसने ढेरीपर मुँह मारा। दूकानके तरुण मालिकने लाठी उठाकर बकरेके सिरपर ज़ोरसे मारी । बकरा मिमियाता हुआ भाग गया ।
यह घटना देखकर एक संतको हँसी आ गई । किसीने उनके हँसनेका कारण पूछा, तो बोले-'पिछले जन्ममें इस दूकानका मालिक यह बकरा हो था । जिन्दगी-भर सख्त मेहनत करके उसने इस दूकानकी तरक्की की थी। यह नौजवान उसीका बेटा है। मुझे हँसी इस बातपर आई कि देखो जो एक दिन इस सारी सम्पत्तिका मालिक था उसे आज एक मुट्ठीभर अनाजका भी अधिकार नहीं है ! और जिस पुत्रको बड़े प्यारसे पाला-पोसा वही लाठीसे मार रहा है !!'
अन्नका असर महाभारतका युद्ध समाप्त हो गया था। शर-शय्यापर पड़े हुए भीष्म पितामह उपदेश दे रहे थे। बीच में महारानी द्रौपदीको हँसी आ गई।
'बेटी ! तू हँसी क्यों ?' पितामहने पूछा।
'मुझसे भूल हो गई। पितामह मुझे क्षमा करें,' द्रौपदीने संकुचित होकर कहा।
'तेरो हँसी अकारण नहीं हो सकती। निःसंकोच बता क्यों हँसी।'
'बड़ी अभद्रताकी बात है। फिर भी आप इजाजत दे रहे है तो बताती हूँ। आप उपदेश दे रहे थे उस वक़्त मुझे यह विचार आया कि 'आज तो आप धर्मकी ऐसी उत्तम व्याख्या कर रहे हैं, लेकिन कौरवोंकी सभामें जब दुःशासन मुझे नंगी करने लगा था उस वक़्त आपका यह धर्मज्ञान कहाँ चला गया था। मनमें इस बातके आते ही मुझे हँसी आ गई । आप मुझे क्षमा करें।'
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सन्त-विनोद