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________________ आगमसूत्र - 1 - हिन्दी अनुवाद ७६ सकते हैं और न मित्र, पुत्र तथा बन्धु ही । वह स्वयं अकेला ही प्राप्त दुःखों को भोगता है, क्योंकि कर्म कर्ता के ही पीछे चलता है ।" "सेवक, पशु, खेत, घर, धन-धान्य आदि सब कुछ छोड़कर यह पराधीन जीव अपने कृत कर्मों को साथ लिए सुन्दर अथवा असुन्दर परभव को जाता है ।" - "जीवरहित उस एकाकी तुच्छ शरीर को चिता में अग्नि से जलाकर स्त्री, पुत्र और जाति-जन किसी अन्य आश्रयदाता का अनुसरण करते हैं ।” [४३२] - "राजन् ! कर्म किसी प्रकार का प्रमाद किए बिना जीवन को हर क्षण मृत्यु के समीप ले जा रहा है, और यह जरा मनुष्य की कान्ति का हरण कर रही है। पांचालराज ! मेरी बात सुनो । प्रचुर अपकर्म मत करो ।” [ ४३३] – 'हे साधो ! जैसे कि तुम मुझे बता रहे हो, मैं भी जानता हूँ कि ये कामभोग बन्धनरूप हैं, किन्तु आर्य ! हमारे-जैसे लोगों के लिए तो ये बहुत दुर्जय हैं ।" [ ४३४ - ४३६] - "चित्र ! हस्तिनापुर में महान् ऋद्धि वाले चक्रवर्ती राजा को देखकर भोगों में आसक्त होकर मैंने अशुभ निदान किया था ।" "उस का प्रतिक्रमण नहीं किया । उसी कर्म का यह फल है कि धर्म को जानता हुआ भी मैं कामभोगों में आसक्त हूँ,” “जैसे दलदल में धंसा हाथी स्थल को देखकर भी किनारे पर नहीं पहुँच पाता है, वैसे ही हम कामभोगों में आसक्त जन जानते हुए भी भिक्षुमाग का अनुसरण नहीं कर पाते हैं ।" [४३७-४३९] –“राजन् ! समय व्यतीत हो रहा है, रातें दौड़ती जा रही हैं । मनुष्य भोग नित्य नहीं है । काम भोग क्षीणपुण्यवाले व्यक्ति को वैसे ही छोड़ देते हैं, जैसे कि क्षीण फलवाले वृक्ष को पक्षी ।" "यदि तू काम-भोगों को छोड़ने में असमर्थ है, तो आर्य कर्म ही कर । धर्म में स्थित होकर सब जीवों के प्रति दया करने वाला बन, जिससे कि तू भविष्य में वैक्रियशरीरधारी देव हो सके ।" "भोगों को छोड़ने की तेरी बुद्धि नहीं है । तू आरम्भ और परिग्रह में आसक्त है । मैंने व्यर्थ ही तुझ से इतनी बातें की, तुझे सम्बोधित किया। राजन् ! मैं जा रहा हूँ ।" [४४०] पांचाल देश का राजा ब्रह्मदत्त मुनि के वचनों का पालन न कर सका, अतः अनुत्तर भोगों को भोगकर अनुत्तर नरक में गया । [४४१] कामभोगों से निवृत्त, उग्र चारित्री एवं तपस्वी महर्षि चित्र अनुत्तर संयम का पालन करके अनुत्तर सिद्धिगति को प्राप्त हुए । ऐसा मैं कहता हूँ । अध्ययन - १४ - इषुकारीय [ ४४२] देवलोक के समान सुरम्य, प्राचीन, प्रसिद्ध और समृद्धिशाली इषुकार नगर था । उसमें पूर्वजन्म में एक ही विमान के वासी कुछ जीव देवताका आयुष्य पूर्ण कर अवतरित हुए । [ ४४३] पूर्वभव में कृत अपने अवशिष्ट कर्मों के कारण वे जीव उच्चकुलों में उत्पन्न हुए और संसारभय से उद्विग्न होकर कामभोगों का परित्याग कर जिनेन्द्रमार्ग की शरण ली । [४४४] पुरुषत्व को प्राप्त दोनों पुरोहितकुमार, पुरोहित, उसकी पत्नी यशा, विशालकीर्ति वाला इषुकार राजा और उसकी रानी कमलावती-ये छह व्यक्ति थे । [४४५] जन्म, जरा और मरण के भय से अभिभूत कुमारों का चित्त मुनिदर्शन से मोक्ष
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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