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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
का वर्णन निम्न प्रकार है-धान्य के पल्य के समान एक योजन प्रमाण दीर्घ, एक योजन प्रमाण विस्तार और एक योजन प्रमाण ऊर्ध्वता से युक्त तथा साधिक तीन योजन की परिधि वाला कोई पल्य हो । उस पल्य को एक, दो, तीन दिवस यावत् सात दिवस के उगे हुए वालानों से इस प्रकार से पूरित कर दिया जाए कि वे बालाग्र अग्नि से जल न सकें, वायु उन्हें उड़ा न सके, वे सड़-गल न सकें, उनका विध्वंस भी न हो सके और उनमें दुर्गन्ध भी उत्पन्न न हो सके । तदनन्तर उस पल्य में से सौ-सौ वर्ष के पश्चात् एक-एक बालाग्र निकालने पर जितने काल में वह पल्य उन बालारों से रहित, रजरहित और निर्लेप एवं निष्ठित-पूर्ण रूप से खाली हो जाए, उतने काल को व्यावहारिक उद्धारपल्योपम कहते हैं ।
[२८५] दस कोटाकोटि व्यावहारक अद्धापल्योपमों का एक व्यावहारिक सागरोपम होता है ।
[२८६] व्यावहारिक अद्धा पल्योपम और सागरोपम से किस प्रयोजन की सिद्धि होती है ? कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता है । ये केवल प्ररूपणा के लिये हैं । सूक्ष्म अद्धापल्योपम का स्वरूप इस प्रकार है-एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा, एक योजन ऊंचा एवं साधिक तीन योजन की परिधिवाला एक पल्य हो । उस पल्य को एक-दो-तीन दिन के यावत् बालाग्र कोटियों से पूरी तरह भर दिया जाए । फिर उनमें से एक-एक बालाग्र के ऐसे असंख्यात असंख्यात खण्ड किये जाएँ कि वे खण्ड दृष्टि के विषयभूत होने वाले पदार्थों की अपेक्षा असंख्यात भाग हों और सूक्ष्म पनक जीव की शरीरावगाहना से असंख्यात गुणे अधिक हों । उन खण्डों में से सौ-सौ वर्ष के पश्चात् एक-एक खण्ड को अपहृत करने-निकालने पर जितने समय में वह पल्य वालाग्रखण्डों से विहीन, नीरज, संश्लेषहित और संपूर्ण रूप से निष्ठितखाली हो जाए, उतने काल को सूक्ष्म अद्धापल्योपम कहते हैं ।
[२८७] इस अद्धापल्योपम को दस कोटाकोटि से गुणा करने से अर्थात् दस कोटाकोटि सूक्ष्म अद्धापल्योपमों का एक सूक्ष्म अद्धासागरोपम होता है ।
[२८८] सूक्ष्म अद्धापल्योपम और सूक्ष्म अद्धासागरोपम से किस प्रयोजन की सिद्धि होती है ? इस से नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देवों के आयुष्य का प्रमाण जाना जाता है ।
[२८९] नैरयिक जीवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! सामान्य रूप में जघन्य १०००० वर्ष की और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है । रत्नप्रभापृथ्वी के नारकों की स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक सागरोपम की होती है । रत्नप्रभापृथ्वी के अपर्याप्तक नारकों की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहर्त की होती है । रत्नप्रभापृथ्वी के पर्याप्तक नारकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त न्यून १०००० वर्ष और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त न्यून एक सागरोपम की होती है । शर्कराप्रभापृथ्वी के नारकों की स्थिति जघन्य एक सागरोपम
और उत्कृष्ट तीन सागरोपम है । बालुकाप्रभा के नैरयिकों की जघन्य स्थिति तीन सागरोपम की और उत्कृष्ट सात सागरोपम, पंकप्रभा के नारकों की जघन्य सात सागरोपम और उत्कृष्ट दस सागरोपम, धूमप्रभा के नारकों की जघन्य दस सागरोपम और उत्कृष्ट सत्रह सागरोपम, तमःप्रभा के नारकों की जघन्य सत्रह सागरोपम और उत्कृष्ट बाईस सागरोपम और तमस्तमःप्रभा के नैरयिकों की जघन्य स्थिति बाईस सागरोपम प्रमाण और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की है ।