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________________ अनुयोगद्वार-२७९ २१३ अयुत, नयुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, चूलिकांग, चूलिका, चौरासी लाख चूलिकाओं की एक शीर्षप्रहेलिकांग होता है एवं चौरासी लाख शीर्षप्रहेलिकांगों की एक शीर्षप्रहेलिका होती है । एतावन्मात्र ही गणित है । इतना ही गणित का विषय है, इसके आगे उपमा काल की प्रवृत्ति होती है । [२८०] औपमिक (काल) प्रमाण क्या है ? वह दो प्रकार का है । पल्योपम और सागरोपम | पल्योपम के तीन प्रकार हैं-उद्धारपल्योपम, अद्धापल्योपम और क्षेत्रपल्योपम । उद्धारपल्योपम दो प्रकार से है, सूक्ष्म और व्यावहारिक उद्धारपल्योपम । इन दोनों में सूक्ष्म उद्धारपल्योपम अभी स्थापनीय है । व्यावहारिक उद्धारपल्योपम का स्वरूप-उत्सेधांगुल से एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन ऊंचा एवं कुछ अधिक तिगुनी परिधि वाला एक पल्य हो । उस पल्य को एक दिन, दो दिन, तीन दिन यावत् अधिक से अधिक सात दिन के उगे हए बालानों से इस प्रकार ठसाठस भरा जाए कि फिर उन बालारों को अग्नि जला न सके, वायु उड़ा न सके, न वे सड़-गल सकें, न उनका विध्वंस हो, न उनमें दुर्गन्ध उत्पन्न हो । तत्पश्चात् एकएक समय में एक-एक बालाग्र का अपहरण किया जाए तो जितने काल में वह पल्य क्षीण, नीरज निर्लेप और निष्ठित हो जाए, उतने काल को व्यावहारिक उद्धारपल्योपम कहते हैं । [२८१] ऐसे दस कोडाकोडी पल्योपमों का एक व्यावहारिक उद्धार सागरोपम होता है । [२८२] व्यावहारिक उद्धार पल्योपम और सागरोपम का क्या प्रयोजन है ? इनसे किसी प्रयोजन की सिद्धि नहीं होती है । ये दोनों केवल प्ररूपणामात्र के लिये हैं । सूक्ष्म उद्धार पल्योपम क्या है ? इस प्रकार है-धान्य के पल्य के समान कोई एक योजन लंबा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा एवं कुछ अधिक तीन योजन की परिधि वाला पल्य हो । इस पल्य को एक, दो, तीन यावत् उत्कृष्ट सात दिन तक के उगे हुए बालारों से खूब ठसाठस भरा जाये और उन एक-एक बालाग्र के ऐसे असंख्यात-असंख्यात खंड किये जाए जो निर्मल चक्षु से देखने योग्य पदार्थ की अपेक्षा भी असंख्यातवें भाग प्रमाण हों और सूक्ष्म पनक जीव की शरीरावगाहना से असंख्यातगुणे हों, जिन्हें अग्नि जला न सके, वायु उड़ा न सके, जो सड़-गल न सकें, नष्ट न हो सकें और न दुर्गधित हो सकें । फिर समय-समय में उन बालाग्रखंडों को निकालते-निकालते जितने काल में वह पल्य बालानों की रज से रहित, बालारों के संश्लेष से रहित और पूरी तरह खाली हो जाए, उतने काल को सूक्ष्म उद्धारपल्योपम कहते हैं । [२८३] इस पल्योपम की दस गुणित कोटाकोटि का एक सूक्ष्म उद्धारसागरोपम का परिमाण होता है । (अर्थात् दस कोटाकोटि सूक्ष्म उद्धारपल्योपमों का एक सूक्ष्म उद्धारसागरोपम होता है)। [२८४] सूक्ष्म उद्धारपल्योपम और सूक्ष्म उद्धारसागरोपम से किस प्रयोजन को सिद्दि होती है ? इससे द्वीप-समुद्रों का प्रमाण जाना जाता है । अढ़ाई उद्धार सूक्ष्म सागरोपम के उद्धार समयों के बराबर द्वीप समुद्र हैं । अद्धापल्योपम के दो भेद हैं सूक्ष्म अद्धापल्योपम और व्यावहारिक अद्धापल्योपम । उनमें से सूक्ष्म अद्धापल्योपम अभी स्थापनीय है । व्यावहारिक
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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