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________________ २१२ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद बलवान्, युगोत्पन्न, नीरोग, स्थिरहस्ताग्र, सुदृढ़ विशाल हाथ-पैर, पृष्ठभाग, पृष्ठान्त और उरु वाला, दीर्घता, सरलता एवं पीनत्व की दृष्टि से समान, समश्रेणी में स्थित तालवृक्षयुगल अथवा कपाट- अर्गला तुल्य दो भुजाओं का धारक, चर्मेष्टक, मुद्गर मुष्टिक के व्यायामों के अभ्यास, आघात-प्रतिघातों से सुदृढ़, सहज बलसम्पन्न, कूदना, तैरना, दौड़ना आदि व्यायामों से अर्जित सामर्थ्य से सम्पन्न, छेक, दक्ष, प्रतिष्ठप्रवीण, कुशल, मेधावी, निपुण, अपनी शिल्पकला में निष्णात, तुन्नवायदारक एक बड़ी सूती अथवा रेशमी शाटिका को लेकर अतिशीघ्रता से एक हाथ प्रमाण फाड़ देता है । भगवन् ! तो जितने काल में उस दर्जी के पुत्र ने शीघ्रता से उस सूती अथवा रेशमी शाटिका को एक हाथ प्रमाण फाड़ दिया है, क्या उतने काल को 'समय' कहते हैं ? यह अर्थ समर्थ नहीं है । क्योंकि संख्यात तंतुओं के समुदाय रूप समिति के संयोग से एक शाटिका निष्पन्न होती है । अतएव जब तक ऊपर का तन्तु छिन्न न हो तब तक नीचे का तन्तु छिन्न नहीं हो सकता । अतः ऊपर के तन्तु के छिदने का काल दूसरा है और नीचे के तन्तु के छिदने का काल दूसरा है । भदन्त ! जितने काल में दर्जी के पुत्र ने उस सूती शाटिका ऊपर के तन्तु का छेदन किया, क्या उतना काल समय है ? नहीं है । क्योंकि संख्यात पक्ष्मों के समुदाय रूप समिति के सम्यक् समागम से एक तन्तु निष्पन्न होता । इसलिये ऊपर के पक्ष्म के छिन्न न होने तक नीचे का पक्ष्म छिन्न नहीं हो सकता है । अन्य काल में ऊपर का पक्ष्म और अन्य काल में नीचे का पक्ष्म छिन्न होता है । जिस काल में उस दर्जी के पुत्र ने उस तन्तु के उपरिवर्ती पक्ष्म का छेदन किया तो क्या उतने काल को समय कहा जाए ? नहीं । क्योंकि अनन्त संघातों के समुदाय रूप समिति के संयोग से पक्ष्म निर्मित होता है, अतः जब तक उपरिवर्ती संघात पृथक् न हो, तब तक अधोवर्ती संघात पृथक् नहीं होता है । उपरिवर्ती संघात के पृथक होने का काल अन्य है और अधोवर्ती संघात के पृथक् होने का काल अन्य है । आयुष्मन् ! समय इससे भी अतीव सूक्ष्मतर है । असंख्यात समयों के समुदाय समिति के संयोग से एक आवलिका होती है । संख्यात आवलिकाओं का एक उच्छ्वास और संख्यात आवलिकाओं का एक निःश्वास होता है । [२७६-२७९] हृष्ट, वृद्धावस्था से रहित, व्याधि से रहित मनुष्य आदि के एक उच्छ्वास और निःश्वास के 'काल' को प्राण कहते हैं । ऐसे सात प्राणों का एक स्तोक, सात स्तोकों का एक लव और लवों का एक मुहूर्त जानना । अथवा - सर्वज्ञ ३७७३ उच्छ्वासनिश्वासों का एक मुहूर्त्त कहा है । इस मुहूर्त प्रमाण से तीस मुहूर्तों का एक अहोरात्र होता है, पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष, दो पक्षों का एक मास, दो मासों की एक ऋतु, तीन ऋतुओं का एक अयन, दो अयनों का एक संवत्सर, पांच संवत्सर का एक युग और बीस युग का वर्षशत होता है । दस सौ वर्षों का एक सहस्र वर्ष, सौ सहस्र वर्षों का एक लक्ष वर्ष, चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वांग, चौरासी लाख पूर्वांगों का पूर्व, चौरासी लाख पूर्वो का त्रुटितांग, चौरासी लाख त्रुटितांगों का एक त्रुटित, चौरासी लाख त्रुटितों का एक अडडांग, चौरासी लाख अडडांगों का एक अडड, चौरासी लाख अड्डों का एक अववांग, चौरासी लाख अववांगों का एक अवव, चौरासी लाख अववों का एक हुहुअंग चौरासी लाख हूहुअंगों का एक हूहू, इसी प्रकार उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, अच्छनिकुरांग, अच्छनिकुर, अयुतांग,
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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