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________________ अनुयोगद्वार-२४७ २०३ वरुण, अज, विवर्द्धि, पूषा, अश्व और यम, यह अट्ठाईस देवताओं के नाम जानना चाहिये। यह देवनाम का स्वरूप है । कुलनाम किसे कहते हैं ? जैसे उग्र, भोग, राजन्य, क्षत्रिय, इक्ष्वाकु, ज्ञात, कौरव्य इत्यादि । यह कुलनाम का स्वरूप है । भगवन् ! पाषण्डनाम क्या है ? श्रमण, पाण्डुरांग, भिक्षु, कापालिक, तापस, परिव्राजक यह पापण्डनाम जानना । भगवन् ! गणनाम क्या है ? गण के आधार से स्थापित नाम गणनाम हैं । -मल्ल, मल्लदत्त, मल्लधर्म, मल्लशर्म, मल्लदेव, मल्लदास, मल्लसेन, मल्लरक्षित आदि गण-स्थानानिष्पन्ननाम हैं । जीवितहेतुनाम क्या है ? जीवित रखने के निमित्त नाम रखने जीवितहेतुनाम हैं । उत्कुरुटक, उज्झितक, कचवरक, सूर्पक आदि । आभिप्रायिकनाम क्या है ? जैसे-अंबक, निम्बक, बकुलक, पलाशक, स्नेहक, पीलुक, करीरक आदि आभिप्रायिक नाम जानना चाहिये। द्रव्यप्रमाणनिष्पन्ननाम क्या है ? छह प्रकार का है । धर्मास्तिकाय यावत् अद्धासमय । भावप्रमाण किसे कहते हैं ? भावप्रमाण, सामासिक, तद्धितज, धातुज और निरुक्तिज के भेद से चार प्रकार का है । सामासिकभावप्रमाण किसे कहते हैं ? सामासिकनामनिष्पन्नता के हेतुभूत समास सात हैं। [२४८] द्वन्द्व, बहुव्रीहि, कर्मधारय, द्विगु, तत्पुरुष, अव्ययीभाव और एकशेष । [२४९] द्वन्द्वसमास क्या है ? ‘दंताश्च ओष्ठौ च इति दंतोष्ठम्', 'स्तनौ च उदरं च इति स्तनोदरम्', 'वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्,' ये सभी शब्द द्वन्द्वसमास रूप हैं । बहुब्रीहिसमास का लक्षण यह है-इस पर्वत पर पुष्पित कुटज और कदंब वृक्ष होने से यह पर्वत फुल्लकुटजकदंब है । यहाँ 'फुल्लकुटजकदंब' पर बहुब्रीहिसमास है । 'धवलो वृषभः धवलवृषभः', 'कृष्णो मृगः कृष्णमृगः', 'श्वेतः पटः श्वेतपट:' 'रक्तपट:' यह कर्मधारयसमास है । द्विगुसमास का रूप इस प्रकार का है-तीन कटुक वस्तुओं का समूह-त्रिकटुक, तीन मधुरों का समूह-त्रिमधुर, तीन गुणों का समूह-त्रिगुण, तीन स्वरों का समूह-त्रिस्वर, दस ग्रामों का समूह-दसग्राम, दस पुरों का समूह-दसपुर, यह द्विगुसमास है । तत्पुरुषसमास का स्वरूप इस प्रकार जानना-तीर्थ में काक तीर्थकाक, वन में हस्ती वनहस्ती, यह तत्पुरुषसमास है । अव्ययीभावसमास इस प्रकार जानना-ग्राम के समीप-'अनुग्राम', नदी के समीप-'अनुनदिकम्', इसी प्रकार अनुस्पर्शम्, अनुचरितम् आदि अव्ययीभावसमास के उदाहरण हैं | जिसमें एक शेष रहे, वह एकशेषसमास है । वह इस प्रकार जैसा एक पुरुष वैसे अनेक पुरुष और जैसे अनेक पुरुष वैसा एक पुरुष जैसा एक कार्षापण वैसे ओक कार्षापण और जैसे अनेक कार्षापण वैसा एक कार्षापण, इत्यादि एकशेषसमास के उदाहरण हैं । तद्धित से निष्पन्न नाम क्या है ? [२५०] कर्म, शिल्प, श्लोक, संयोग, समीप, संयूथ, ऐश्वर्य, अपत्य, इस प्रकार तद्धितनिष्पन्ननाम आठ प्रकार का है । [२५१] कर्मनाम क्या है ? दौष्यिक, सौत्रिक, कासिक, सूत्रवैचारिक, भांडवैचारि, कौलालिक, ये सब कर्मनिमित्तज नाम हैं । तौनिक तान्तुवायिक, पाट्टकारिक, औवृत्तिक वालंटिक मौजकारिक, काष्ठकारिक छात्रकारिक वाह्यकारिक, पौस्तकारिक चैत्रकारिक दान्तकारिक लैप्यकारिक शैलकारिक कौटिटमकारिक । यह शिल्पनाम हैं । सभी के अतिथि श्रमण, ब्राह्मण श्लोकनाम के उदाहरण हैं । संयोगनाम का रूप इस प्रकार समझना-राजा का ससुर-राजकीय
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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