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________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद है, हेमवतक्षेत्रीय है, ऐरण्यवतक्षेत्रीय है, यावत् यह उत्तरकुरुक्षेत्रीय है । अथवा यह मागधीय है, मालवीय है, सौराष्ट्रीय है, महाराष्ट्रीय है, आदि नाम क्षेत्रसंयोगनिष्पन्ननाम हैं । कालसंयोग से निष्पन्न नाम क्या है ? इस प्रकार है- सुषमसुषम काल में उत्पन्न होने से यह 'सुषम- सुषमज' है, सुषमकाल में उत्पन्न होने से 'सुषमज' है । इसी प्रकार से सुषमदुषमज, दुषमसुषमज, दुषमज, दुषमदुषमज नाम भी जानना । अथवा यह प्रावृषिक है, यह वर्षारात्रिक है, यह शारद है, हेमन्तक है, वासन्तक है, ग्रीष्मक है आदि सभी नाम कालसंयोग से निष्पन्न नाम हैं । भावसंयोगनिष्पन्ननाम क्या है ? दो प्रकार हैं । प्रशस्तभावसंयोगज, अप्रशस्तभावसंयोगज । प्रशस्तभावसंयोगनिष्पन्ननाम क्या है ? ज्ञान के संयोग से ज्ञानी, दर्शन के संयोग से दर्शनी, चारित्र के संयोग से चारित्री नाम होना प्रशस्तभावसंयोगनिष्पन्न नाम है। अप्रशस्त भावसंयोगनिष्पन्न नाम क्या है ? क्रोध से संयोग से क्रोधी, मान के संयोग से मानी, माया के संयोग से मायी और लोभ के संयोग से लोभी नाम होना अप्रशस्तभावसंयोगनिष्पन्न नाम हैं । इसी प्रकार से भावसंयोगजनाम का स्वरूप और साथ ही संयोगनिष्पन्न नाम की वक्तव्यता जानना प्रमाण से निष्पन्न नाम क्या है ? चार प्रकार हैं । नामप्रमाण से निष्पन्न नाम, स्थापनाप्रमाण से निष्पन्न नाम, द्रव्यप्रमाण से निष्पन्न नाम, भावप्रमाण से निष्पन्न नाम । नाम प्रमाणनिष्पन्न नाम क्या है ? इस प्रकार है-किसी जीव या अजीव का अथवा जीवों या अजीवों का, तदुभव का अथवा तदुभयों का 'प्रमाण' ऐसा जो नाम रख लिया जाता है, वह नामप्रमाण और उससे निष्पन्न नाम नामप्रमाण निष्पन्ननाम है । स्थापनाप्रमाणनिष्पन्न नाम क्या है ? सात प्रकार का है । [२३९] नक्षत्रनाम, देवनाम, कुलनाम, पापंडनाम, गणनाम, जीवितनाम और आभिप्रायिकनाम । [२४०] नक्षत्रनाम - क्या है ? वह इस प्रकार है-कृतिका नक्षत्र में जन्मे का कृत्तिक, कृत्तिकादत्त, कृत्तिकाधर्म, कृत्तिकाशर्म, कृत्तिकादेव, कृत्तिकादास, कृत्तिकासेन, कृत्तिकारक्षित आदि नाम रखना । रोहिणी नक्षत्र में उत्पन्न हुए का रौहिणेय, रोहिणीदत्त, रोहिणीधर्म, रोहिणीशर्म, रोहिणीदेव, रोहिणीदास, रोहिणीसेन, रोहिणीरक्षित नाम रखना । इसी प्रकार अन्य सब नक्षत्रों में जन्मे हुओं के उन-उन नक्षत्रों के आधार से रक्खे नामों के विषय में जानना चाहिये । नक्षत्रनामों की संग्राहक गाथायें इस प्रकार हैं २०२ [ २४१ - २४४] कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मधा, पूर्वफाल्गुनी, उत्तरफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुरादा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, शतभि,, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा, रेवती, अश्विनी, भरिणी, यह नक्षत्रों के नामों की परिपाटी । इस प्रकार नक्षत्रनाम का स्वरूप है । देवनाम क्या है ? यथा - अग्नि देवता से अधिष्ठित नक्षत्र में उत्पन्न हुए का आग्निक, अग्निदत्त, अग्निधर्म, अग्निशर्म, अग्निदास, अग्निसेन, अग्निरक्षित आदि नाम रखना । इसी प्रकार से अन्य सभी नक्षत्र - देवताओं के नाम पर स्थापित नामों के लिये भी जानना चाहिये । देवताओं के नामों की भी संग्राहक गाथायें हैं, यथा [२४५ - २४७] अग्नि, प्रजापति, सोम, रुद्र, अदिति, बृहस्पति, सर्प, पिता, भग, अर्यमा, सविता, त्वष्टा, वायु, इन्द्राग्नि, मित्र, इन्द्र, निर्ऋति, अम्भ, विश्व, ब्रह्मा, विष्णु, वसु,
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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