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________________ २०४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद ससुर, राजा का साला-राजकीय साला, राजा का साढू-राजकीय साढू, इत्यादि संयोगनाम हैं। ___ समीपनाम किसे कहते हैं ? समीप अर्थक तद्धित प्रत्यय-निष्पन्ननाम-गिरि के समीप का नगर गिरिनगर, विदिशा के समीप का नगर वैदिश, आदि रूप जानना । तरंगवतीकार, मलयवतीकार, आत्मानुषष्ठिकार, बिन्दुकार आदि नाम संयूथनामके उदाहरण हैं । ऐश्वर्य द्योतक शब्दों से तद्धित प्रत्यय करने पर निष्पन्न ऐश्वर्यनाम राजेश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सार्थवाह, सेनापति आदि रूप हैं । यह ऐश्वर्यनाम का स्वरूप है । अपत्य-पुत्र से विशेपित होने अर्थ में तद्धित प्रत्यय लगाने से निष्पन्ननाम इस प्रकार हैं-तीर्थंकरमाता, चक्रवर्तीमाता. बलदेवनमाता, वासुदेवमाता, राजमाता, गणिमाता, वाचकमाता आदि ये सब अपत्यनाम हैं । धातुजनाम क्या है ? परस्मैपदी सत्तार्थक भू धातु, वृद्ध्यर्थक एध धातु, संघर्षार्थक स्पर्द्ध धातु, प्रतिष्ठा, लिप्सा या संचय अर्थक गाध और विलोडनार्थक बाधृ धातु आदि से निष्पन्न भव, एधमान आदि नाम धातुजनाम हैं । निरुक्ति से निष्पन्ननाम निरुक्तिजनाम हैं । जैसे-मह्यांशेते महिषः-पृथ्वी पर जो शयन करे वह महिष, भ्रमति रौति इति भ्रमरः-भ्रमण करते हुए जो शब्द करे वह भ्रमर, मुहर्मुहुर्लसति इति मुसल-जो बारंबार ऊंचा-नीचा हो वह मूसल, इत्यादि निरुक्तिजतद्धितनाम हैं । .. [२५२] भगवन् ! प्रमाण क्या है ? प्रमाण चार प्रकार का है । द्रव्यप्रमाण, क्षेत्रप्रमाण, कालप्रमाण और भावप्रमाण । [२५३] द्रव्यप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है, यथा-प्रदेशनिष्पन्न और विभागनिष्पन्न । प्रदेशनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण क्या है ? परमाणु पुद्गल, द्विप्रदेशों यावत् दस प्रदेशों, संख्यात प्रदेशों, असंख्यात प्रदेशों और अनन्त प्रदेशों से जो निष्पन्न-सिद्ध होता है । विभागनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण पाँच प्रकार का है । मानप्रमाण, उन्मानप्रमाण, अवमानप्रमाण, गणिमप्रमाण और प्रतिमानप्रमाण। मानप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है-धान्यमानप्रमाण और रसमानप्रमाण । धान्यमानप्रमाण क्या है ? दो असति की एक प्रसृति होती है, दो प्रसृति की एक सेतिका, चार सेतिका का एक कुडब, चार कुडब का एक प्रस्थ, चार प्रस्थों का एक आढक, चार आढक का एक द्रोण, साठ आढक का एक जघन्य कुंभ, अस्सी आढक का एक मध्यम कुंभ, सौ आढक का एक उत्कृष्ट कुंभ और आठ सौ आढकों का एक बाह होता है । धन्यमानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? ईसके द्वारा मुख, इड्डर, अलिंद और अपचारि में रखे धान्य के प्रमाण का परिज्ञान होता है । इसे ही धान्यमानप्रमाण कहते हैं । समानप्रमाण क्या है ? रसमानप्रमाण धान्यमानप्रमाण से चतुर्भाग अधिक और अभ्यन्तर शिखायुक्त होता है । चार पल की एक चतुःषष्ठिका होती है । इसी प्रकार आठ पलप्रमाण द्वात्रिंशिका, सोलह पलप्रमाण षोडशिका, बत्तीस पलप्रमाण अष्टभागिका, चौसठ पलप्रमाण चतुर्भागिका, १२८ पलप्रमाण अर्धमानी और २५६ पलप्रमाण मानी होती है । इस रसमानप्रमाण का क्या प्रयोजन है ? इस से वारक, घट, करक, किक्किरि, दृति, करोडिका, चौड़ा होता हहै, कुंडिका, आदि में भरे हुए रसों के परिमाण का ज्ञान होता है । उन्मानप्रमाण क्या है ? जिसका उन्मान किया जाये अथवा जिसके द्वारा उन्मान किया जाता है, उन्हें उन्मानप्रमाण कहते हैं । उसका प्रमाण निम्न प्रकार है-अर्धकर्ष, कर्ष, अर्धपल,
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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