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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
[१३५५] उसके बाद वह सब जानता है और देखता है, तथा मोह और अन्तराय से रहित होता है । निराश्रव और शुद्ध होता है । ध्यान-समाधि से सम्पन्न होता है । आयुष्य के क्षय होने पर मोक्ष को प्राप्त होता है ।
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[१३५६] जो जीव को सदैव बाधा देते रहते हैं, उन समस्त दुःखों से तथा दीर्घकालीन कर्मों से मुक्त होता है । तब वह प्रशस्त, अत्यन्त सुखी तथा कृतार्थ होता है ।
[१३५७] अनादि काल से उत्पन्न होते आए सर्व दुःखों से मुक्ति का यह मार्ग बताया है । उसे सम्यक् प्रकार से स्वीकार कर जीव क्रमशः अत्यन्त सुखी होते हैं । ऐसा मैं कहता हूँ ।
अध्ययन-३३- - कर्मप्रकृति
[१३५८] मैं अनुपूर्वी के क्रमानुसार आठ कर्मों का वर्णन करूँगा, जिनसे बँधा हुआ यह जीव संसार में परिवर्तन करता है ।
[१३५९-१३६०] ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोह, आयुकर्म-नाम-कर्म, गोत्र और अन्तराय संक्षेप से ये आठ कर्म हैं ।
[१३६१] ज्ञानावरण कर्म पाँच प्रकार का है- श्रुत-ज्ञानावरण, आभिनिबोधिक- ज्ञानावरण, अवधि-ज्ञानावरण, मनो- ज्ञानावरण और केवल ज्ञानावरण ।
[१३६२-१३६३] निंद्रा, प्रचला, निद्रा-निद्रा, प्रचलाप्रचला और पाँचवीं स्त्यानगृद्धि । चक्षुदर्शनावरण, अचक्षु - दर्शनावरण, अवधि - दर्शनावरण और केवल दर्शनावरण ये नौ दर्शनावरण कर्म के विकल्प-भेद हैं ।
[१३६४] वेदनीय कर्म के दो भेद हैं- सातावेदनीय और असाता वेदनीय । साता और असातावेदनीय के अनेक भेद हैं ।
[१३६५ - १३६८] मोहनीय कर्म के भी दो भेद हैं-दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय | दर्शनमोहनीय के तीन और चारित्रमोहनीय के दो भेद हैं । सम्यक्त्व, मिथ्यात्व और सम्यक मिथ्यात्व - ये तीन दर्शन मोहनीय की प्रकृतियाँ हैं । चारित्रमोहनीय के दो भेद हैं- कषाय मोहनीय और नोकपाय मोहनीय । कषाय मोहनीय कर्म के सोलह भेद हैं । नोकषाय मोहनीय कर्म के सात अथवा नौ भेद हैं ।
[१३६९] आयु कर्म के चार भेद हैं-नैरयिकआयु, तिर्यग्आयु, मनुष्यआयु और देव ।
[१३७०] नाम कर्म के दो भेद हैं-शुभ नाम और अशुभ नाम । शुभ के अनेक भेद हैं । इसी प्रकार अशुभ के भी ।
[१३७१] गोत्र कर्म के दो भेद हैं- उच्च गोत्र और नीच गोत्र । इन दोनों के आठआठ भेद हैं ।
[१३७२] संक्षेप से अन्तराय कर्म के पाँच भेद हैं- दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय और वीर्यान्तराय ।
[१३७३] ये कर्मों की मूल प्रकृतियाँ और उत्तर प्रकृतियाँ कही गई हैं । इसके आगे उनके प्रदेशाग्र- द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव को सूनो ।