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________________ उत्तराध्ययन- ३३/१३७४ १३३ [१३७४- १३७५] एक समय में बद्ध होने वाले सभी कर्मों का कर्मपुद्गलरूप द्रव्य अनन्त होता है । वह ग्रन्थिभेद न करनेवाले अनन्त अभव्य जीवों से अनन्त गुण अधिक और सिद्धों के अन्तवे भाग जितना होता है । सभी जीवों के लिए संग्रह - कर्म - पुद्गल छहों दिशाओं में आत्मा से स्पृष्ट सभी आकाश प्रदेशों में है । वे सभी कर्म - पुद्गल बन्ध के समय आत्मा के सभी प्रदेशों के साथ बद्ध होते हैं । 1 [१३७६-१३७७] ज्ञानावरण, दर्शनावरण तथा वेदनीय और अन्तराय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तीस कोटि-कोटि उदधि सदृश सागरोपम की है और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है । [१३७८] मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोटि-कोटि सागरोपम की है । और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त की है । [१३७९] आयु-कर्म की उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की है; और जघन्य स्थिति मुहूर्त की है । [ १३८० ] नाम और गोत्र - कर्म की उत्कृष्ट स्थिति बीस कोटि-कोटि सागरोपम की है और जघन्य स्थिति आठ मुहूर्त की है । [१३८१-१३८२] सिद्धों के अनन्तवें भाग जितने कर्मों के अनुभाग हैं । सभी अनुभागों का प्रदेश- परिमाण सभी भव्य और अभव्य जीवों से अतिक्रान्त है, अधिक है । इसलिए इन कर्मों के अनुभागों को जानकर बुद्धिमान साधक इनका संवर और क्षय करने का प्रयत्न करे । ऐसा मैं कहता हूँ । अध्ययन- ३४ - लेश्याध्ययन [१३८३-१३८४] मैं अनुपूर्वी के क्रमानुसार लेश्याअध्ययन का निरूपण करूँगा । मुझसे तुम छहों लेश्याओं के अनुभावों को सुनो । लेश्याओं के नाम, वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श, परिणाम, लक्षण, स्थान, स्थिति, गति और आयुष्य को मुझसे सुनो । [१३८५] क्रमशः लेश्याओं के नाम इस प्रकार हैं-कृष्ण, नील, कापोत, तेजस्, पद्म और शुक्ल । [१३८६-१३९१] कृष्ण लेश्या का वर्ण सजल मेघ, महिष, श्रृंग, अरिष्टक खंजन, अंजन और नेत्र तारिका के समान (काला) है । नील लेश्या का वर्ण - नील अशोक वृक्ष, चास पक्षी के पंख और स्निग्ध वैडूर्य मणि के समान (नीला) है । कापोत लेश्या का वर्णअलसी के फूल, कोयल के पंख और कबूतर की ग्रीवा के वर्ण के समान ( कुछ काला और कुछ लाल- जैसा मिश्रित) है । तेजोलेश्या का वर्ण - हिंगुल, गेरू, उदीयमान तरुण सूर्य, तोते की चोंच, प्रदीप की लौ के समान (लाल) होता है । पद्म लेश्या का वर्ण - हरिताल और हल्दी के खण्ड तथा सण और असन के फूल के समान (पीला) है । शुक्ल लेश्या का वर्ण-शंख, अंकरत्न, कुन्दपुष्प, दुग्ध-धारा, चांदी के हार के समान (श्वेत) है । I [१३९२-१३९७] कडुवा तूम्बा, नीम तथा कड़वी रोहिणी का रस जितना कडुवा होता है, उससे अनन्त गुण अधिक कडुवा कृष्ण लेश्या का रस है । त्रिकटु और गजपीपल का रस जितना तीखा है, उससे अनन्त गुण अधिक तीखा नील लेश्या का रस है । कच्चे आम और कच्चे कपित्थ का रस जैसे कसैला होता है, उससे अनन्त गुण इधक कसैला कापोत
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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