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________________ ११८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद [११५१] भन्ते ! शरीर के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? शरीर के प्रत्याख्यान से जीव सिद्धों के विशिष्ट गुणों को प्राप्त होता है । सिद्धों के विशिष्ट गुणों से सम्पन्न जीव लोकाग्र में पहुँचकर परम सुख को प्राप्त होता है । [११५२] भन्ते ! सहाय-प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सहायता के प्रत्याख्यान से जीव एकीभाव को प्राप्त होता है । एकीभाव प्राप्त साधक एकाग्रता की भावना करता हुआ विग्रहकारी शब्द, वाक्कलहझगड़ा-टंटा, क्रोधादि कपाय तथा तू, तू, मैं, मैं आदि से मुक्त रहता है । संयम और संवर में व्यापकता प्राप्त कर समाधिसम्पन्न होता है । [११५३] भन्ते ! भक्त प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? भक्त-प्रत्याख्यान से जीव अनेक प्रकार के सैकड़ों भवों का, जन्म-मरणों का निरोध करता है । [११५४] भन्ते ! सद्भाव प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सद्भाव प्रत्याख्यान से जीव अनिवृत्ति को प्राप्त होता है । अनिवृत्ति को प्राप्त अनगार केवली के शेष रहे हुए वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र-इन चार भवोपग्राही कर्मों का क्षय करता है । वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है, सर्व दुःखों का अन्त करता है । [११५५] भन्ते ! प्रतिरूपता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? प्रतिरूपता से-जिनकल्प जैसे आचार के पालन से जीव उपकरणों की लघुता को प्राप्त होता है । लघुभूत होकर जीव अप्रमत्त, प्रकट लिंगवाला, प्रशस्त लिंगवाला, विशुद्ध सम्यकत्व से सम्पन्न, सत्त्व और समिति से परिपूर्ण, सर्व प्राण, भूत जीव और सत्त्वों के लिए विश्वसनीय, अल्प प्रतिलेखनवाला, जितेन्द्रिय, विपुलतप और समितियों का सर्वत्र प्रयोग करनेवाला होता है । [११५६] भन्ते ! वैयावृत्य से जीव को क्या प्राप्त होता है ? वैयावृत्य से जीव तीर्थंकर नाम-गोत्र का उपार्जन करता है ? __[११५७] भन्ते ! सर्वगुणसंपन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सर्वगुणसंपन्नता से जीव अपुनरावृत्ति को प्राप्त होता है । वह जीव शारीरिक और मानसिक दुःखों का भागी नहीं होता है । [११५८] भन्ते ! वीतरागता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? वीतरागता से जीव स्नेह और तृष्णा के अनुवन्धनों का विच्छेद करता है । मनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गन्ध से विरक्त होता है । [११५९] भन्ते ! शान्ति से जीव को क्या प्राप्त होता है ? क्षान्ति से जीव परीषहों पर विजय प्राप्त करता है । [११६०] भन्ते ! मुक्ति से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मुक्ति से जीव अकिंचनता को प्राप्त होता है । अकिंचन जीव अर्थ के लोभी जनों से अप्रार्थनीय हो जाता है । [११६१] भन्ते ! ऋजुता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? ऋजुता से जीव काय, भाव, भापा की सरलता और अविसंवाद को प्राप्त होता है । अविसंवाद-सम्पन्न जीव धर्म का आराधक होता है । [११६२] भन्ते ! मृदुता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मृदुता से जीव अनुद्धत भाव को प्राप्त होता है । अनुद्धत जीव मृदु-मार्दवभाव से सम्पन्न होता है । आठ मद-स्थानों
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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