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उत्तराध्ययन-२९/११४०
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का क्षय करके व्यवदान को प्राप्त होता है ।
[११४१] भन्ते ! व्यवदान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? व्यवदान से जीव को अक्रिया प्राप्त होती है । अक्रिय होने के बाद वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है और सब दुःखों का अन्त करता है ।
[११४२] भन्ते ! वैषयिक सुखों की स्पृहा के निवारण से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सुख-शात से विपयों के प्रति अनुत्सुकता होती है । अनुत्सुकता से जीव अनुकम्पा करने वाला, अनुभट, शोकरहित होकर चारित्रमोहनीय कर्म का क्षय करता है ।
[११४३] भन्ते ! अप्रतिबद्धता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? अप्रतिबद्धता से जीव निस्संग होता है । निस्संग होन ये जीव एकाकी होता है, एकाग्रचित्त होता है । दिन और रात सदा सर्वत्र विरक्त और अप्रतिबद्ध होकर विचरण करता है ।
[११४४] भन्ते ! विविक्त शयनासन से जीव को क्या प्राप्त होता है ? विविक्त शयनासन से जीव चारित्र की रक्षा करता है । चारित्र की रक्षा करने वाला विविक्ताहारी दृढ चारित्री, एकान्तप्रिय, मोक्ष भाव से संपन्न जीव आठ प्रकार के कर्मों की ग्रन्थि का निर्जरण करता है ।
[११४५] भन्ते ! विनिवर्तना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? विनिवर्तना से मन और इन्द्रियों को विषयों से अलग रखने की साधना से जीव पाप कर्म न करने के लिए उद्यत रहता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा से कर्मों को निवृत्त करता है । चार अन्तवाले संसार कान्तार को शीघ्र ही पार कर जाता है ।
[११४६] भन्ते ! सम्भोग के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सम्भोग (एक-दूसरे के साथ सहभोजन आदि के संपर्क) के प्रत्याख्यान से परावलम्बन से निरालम्ब होता है । निरालम्ब होने से उसके सारे प्रयत्न आयतार्थ हो जाते हैं । स्वयं के उपार्जित लाभ से सन्तुष्ट होता है । दूसरों के लाभ का आस्वादन नहीं करता है । उसकी कल्पना, स्पृहा, प्रार्थना, अभिलाषा नहीं करता है । इस प्रकार दूसरी सुख-शय्या को प्राप्त होकर विहार करता है ।
[११४७] भन्ते ! उपधि के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? उपधि के प्रत्याख्यान से जीव निर्वघ्न स्वाध्याय को प्राप्त होता है । उपधिरहित जीव आकांक्षा से मुक्त होकर उपधि के अभाव में क्लेश को प्राप्त नहीं होता है ।
[११४८] भन्ते ! आहार के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? आहार के प्रत्याख्यान से जीव जीवन की आशंसा के प्रयत्नों को विच्छिन्न कर देता है । जीवन की कामना के प्रयत्नों को छोड़कर वह आहार के अभाव में भी क्लेश को प्राप्त नहीं होता है ।
[११४९] भन्ते ! कषाय के प्रत्याख्यान-से जीव को क्या प्राप्त होता है ? कपाय के प्रत्याख्यान से वीतरागभाव को प्राप्त होता है । वीतरागभाव को प्राप्त जीव सुख-दुःख में सम हो जाता है ।
[११५०] भन्ते ! योग के प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मन, वचन, काय से सम्बन्धित योगों के प्रत्याख्यान से अयोगत्व को प्राप्त होता है । अयोगी जीव नए कर्मों का वन्ध नहीं करता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है ।