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उत्तराध्ययन-२९/११६२
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को विनष्ट करता है ।
[११६३] भन्ते ! भाव-सत्य से जीव को क्या प्राप्त होता है ? भाव-सत्य से जीव भाव-विशुद्धि को प्राप्त होता है । भाव-विशुद्धि में वर्तमान जीव अर्हतप्रज्ञप्त धर्म की आराधना में उद्यत होता है । अर्हत्प्रज्ञप्त धर्म की आराधना में उद्यत होकर परलोक में भी धर्म का आराधक होता है ।
[११६४] भन्ते ! करण सत्य से जीव को क्या प्राप्त होता है ? करण सत्य से जीव करणशक्ति को प्राप्त होता है । करणसत्य में वर्तमान जीव 'यथावादी तथाकारी' होता है ।
[११६५] भन्ते ! योग-सत्य से जीव को क्या प्राप्त होता है ? योग सत्य से जीव योग को विशुद्ध करता है ।
[११६६] भन्ते ! मनोगुप्ति से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मनोगुप्ति से जीव एकाग्रता को प्राप्त होता है । एकाग्र चित्त वाला जीव अशुभ विकल्पों से मन की रक्षा करता है, और संयम का आराधक होता है ।
[११६७] भन्ते ! वचनगुप्ति से जीव को क्या प्राप्त होता है ? वचनगुप्ति से जीव निर्विकार भाव को प्राप्त होता है । निर्विकार जीव सर्वथा वागगुप्त तथा अध्यात्मयोग के साधनभूतध्यान से युक्त होता है ।
[११६८] भन्ते ! कायगुप्ति से जीव को क्या प्राप्त होता है ? कायगुप्ति से जीव संवर को प्राप्त होता है । संवर से काय गुप्त होकर फिर से होनेवाले पापाश्रय का निरोध करता है।
[११६९] भन्ते ! मन की समाधारणा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मन की समाधारणा से जीव एकाग्रता को प्राप्त होता है ! एकाग्रता को प्राप्त होकर ज्ञानपर्यवों को-ज्ञान के विविध तत्त्वबोधरूप प्रकारों को प्राप्त होता है । ज्ञानपर्यवों को प्राप्त होकर सम्यग-दर्शन को विशुद्ध करता है और मिथ्या दर्शन की निर्जरा करता है ।
[११७०] भन्ते ! वाक् समाधारणा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? वाक् समाधारणा से जीव वाणी के विषय भूत दर्शन के पर्यवों को विशुद्ध करता है । वाणी के विषयभूत दर्शन के पर्यवों को विशुद्ध करके सुलभता से वोधि को प्राप्त करता है । बोधि की दुर्लभता को क्षीण करता है ।
[११७१] भन्ते ! काय समाधारणा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? काय समाधारणा से जीव चारित्र के पर्यवों को विशुद्ध करता है । चारित्र के पर्यवों को विशुद्ध करक यथाख्यात चारित्र को विशुद्ध करता है । यथाख्यात चारित्र को विशुद्ध करके केवलिसत्क वेदनीय आदि चार कर्मों का क्षय करता है । उसके बाद सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है । परिनिर्वाण को प्राप्त होता है, सब दुःखों का अन्त करता है ।
[११७२-११७३] भन्ते ! ज्ञान-सम्पन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? ज्ञानसम्पन्नता से जीव सब भावों को जानता है । ज्ञान-सम्पन्न जीव चार गतिरूप अन्तों वाले संसार वन में नष्ट नहीं होता है । जिस प्रकार ससूत्र सुई कहीं गिर जाने पर भी विनष्ट नहीं होती, उसी प्रकार ससूत्र जीव भी संसार में विनष्ट नहीं होता । ज्ञान, विनय, तप और चारित्र के योगों को प्राप्त होता है । तथा स्वसमय और परमसमय में, प्रामाणिक माना जाता है ।।
[११७४] भन्ते ! दर्शन-संपन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? दर्शन सम्पन्नता