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नमो नमो निम्मलदंसणस्स
३१ गणिविद्या
प्रकर्णक- ८ - हिन्दी अनुवाद
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[१] प्रवचन शास्त्र में जिस तरह से दिखाया गया है, वैसा यह जिनभाषित वचन है और विद्वान् ने प्रशंसा की है वैसी उत्तम नव बल विधि की बलाबल विधि मैं कहूँगा । [२] यह उत्तम नवबल विधि इस प्रकार है-दिन, तिथि, नक्षत्र, करण, ग्रहदिन, मुहूर्त, शुकनबल, लग्नबल निमित्तवल ।
[३] उभयपक्ष में दिन में होरा ताकतवर है । रात्रि को कमजोर है, रात्रि में विपरित है उस बलाबल विधि को पहचानो ।
[४-८] एकम को लाभ नहीं, बीज को विपत्ति है, त्रीज को अर्थ सिद्धि पाँचम को विजय आगे रहता है । सातम में कई गुण है, दशम को प्रस्थान करे तो मार्ग निष्कंटक बनता है । एकादशी को आरोग्य में विघ्नरहितता और कल्याण को जानो । जो अमित्र हुए है वो तेरस के बाद बँस में होते है । चौदश, पूनम, आठम, नोम, छठ्ठ, चौथ, वारस का उभय पक्ष में वर्जन करना ।
[८] एकम, पाँचम, दशम, पुर्णिमा, अगियारस इन दिनों में शिष्य दीक्षा करनी चाहिए। [९-१०] पाँच तिथि है-नन्दा, भद्रा, विजया, तुच्छा और पूर्णा । छ बार एक मास में यह एक - एक अनियत वर्तती है । नन्दा, जया और पूर्णा तिथि में शिष्य दीक्षा करना । नन्दा भद्रा में व्रत और पूर्णा में अनशन करना चाहिए ।
[११-१४] पुष्य, अश्विनी, मृगशिर्ष, रेवती, हस्त, चित्रा, अनुराधा, जयेष्ठा और मूल यह नौ नक्षत्र गमन के लिए सिद्ध है । मृगशिर्ष, मघा, मूल, विशाखा, अनुराधा हस्त, उत्तरा, रेवती, अश्विनी और श्रवण इस नक्षत्र में मार्ग में प्रस्थान और स्थान करना लेकिन इस कार्य अवसर में ग्रहण या संध्या नहीं होनी चाहिए । ( इस तरह स्थान - प्रस्थान करनेवाले को) सदा मार्ग में भोजन - पान बहुत सारे फल-फूल प्राप्त होते है और जाते हुए भी क्षेम-कुशल पाते है। [१५] सन्ध्यागत, रविगत, विड्डेर, संग्रह, विलंबि, राहुगत और ग्रहभिन्न यह सर्व नक्षत्र वर्जन करने । (जिसको समजाते हुए आगे बताते है कि) 1
[१६] अस्त समय के नक्षत्र को सन्ध्यागत्, जिसमें सूरज रहा हो वो रविगत नक्षत्र उल्टा होनेवाला विड्डेर नक्षत्र, क्रूर ग्रह रहा हो वो संग्रह नक्षत्र ।
जिसकी
[१७] सूरज ने छोड़ा हुआ विलम्बी नक्षत्र, जिसमें ग्रहण हो वो राहुगत नक्षत्र, मध्य में से ग्रह पसार हो वो ग्रह भिन्न नक्षत्र कहलाता है ।
[१८-२०] सन्ध्यागत नक्षत्र में तकरार होती है और विलम्बी नक्षत्र में विवाद होता है । विड्डेर में सामनेवाले की जय हो और आदित्यगत में परम दुःख प्राप्त होता है । संग्रह नक्षत्र में निग्रह हो, राहुगत में मरण हो और ग्रहभिन्न में लहूँ की उल्टी होती है । सन्ध्यागत, राहुगत और आदित्यगत नक्षत्र, कमजोर और रूखे है । सन्ध्यादि चार से और ग्रहनक्षत्र से
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