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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
[७४] ऋतु आदि आँठ प्रकार की गोचरभूमि के लिए विहरनार, विविध प्रकार के अभिग्रह और दुष्कर प्रायश्चित आचरण करनेवाले मुनि जिस गच्छ में हो, वो देवेन्द्र को भी आश्चर्यकारी है । गौतम ! ऐसे गच्छ को ही गच्छ मानना चाहिए ।
[ ७५ ] पृथ्वी, अप्, अग्नि, वायु और वनस्पति और अलग तरह के बेइन्द्रिय आदि स जीव को जहाँ मरण के अन्त में भी मन से पीड़ित नहीं किया जा शकता, हे गौतम! उसे हकीकत में गच्छ मानना चाहिए ।
[ ७६ ] खजुरी और मुँज के झाडु से जो साधु उपाश्रय को प्रमार्जते है, उस साधु को जीव पर बीलकुल दया नहीं है, ऐसा हे गौतम! तू अच्छी तरह से समझ ले ।
[७७] ग्रीष्म आदि काल में तृषा से प्राण सूख जाए और मौत मिले तो भी बाहर का सचित्त पानी बूँद मात्र भी जो गच्छ में मुनि न ले, वो गच्छ मानना चाहिए ।
[ ७८ ] और फिर जिस गच्छ में अपवाद मार्ग से भी हमेशा प्राशुक - निर्जीव पानी सम्यक् तरह से आगम विधि से इच्छित होता है गौतम उसे गच्छ जानो ।
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[ ७९] शूल, विशूचिका आदि में से किसी भी विचित्र विमारी पेदा होने से, जिस गच्छ में मुनि अनि आदि न जलाए, उसे गच्छ जानना चाहिए ।
[८०] लेकिन अपवादपद में सारुपिक आदि या श्रावक आदि के पास यतना से वैसा करवाएं ।
[८१] पुष्प, बीज, त्वचा आदि अलग तरह के जीव का संघट्ट और परिताप आदि जिस गच्छ में मुनि से सहज भी न किया जाता हो उसे गच्छ मानना चाहिए ।
[८२] और हाँसी, क्रीडा, कंदर्प, नास्तिकवाद, बेवक्त कपड़े धोना, वंडी, गड्ढा आदि ठेकना साधु श्रावक पर क्रोधादिक से लांघण करना, वस्त्र पात्रादि पर ममता और अवर्णवाद का उच्चारण आदि जिस गच्छ में न किया जाए उसे सम्यग् गच्छ मानना चाहिए ।
[८३] जिस गच्छ के भीतर कारण उत्पन्न हो तो भी वस्त्रादिक का अन्तर करके स्त्री का हाथ आदि का स्पर्श द्रष्टिविष सर्प और ज्वलायमान अग्नि की तरह त्याग किया जाए उसे गच्छ मानना चाहिए |
[८४] बालिका, वुढ़िया, पुत्री, पौत्री या भगिनी आदि के शरीर का स्पर्श थोड़ा भी जिस गच्छ में न किया जाए, हे गौतम! वही गच्छ है ।
[८५] साधु का वेश धारण करनेवाला, आचार्य आदि पदवी से युक्त ऐसा भी मुनि जो खुद स्त्री के हाथ का स्पर्श करे, तो हे गौतम! जरुर वो गच्छ मूलगुण से भ्रष्ट चारित्रहीन है ऐसा जानना ।
[८६] अपवाद पद से भी स्त्री के हाथ का स्पर्श आगम में निषेध किया है, लेकिन दीक्षा का अंत आदि हो ऐसा कार्य पेदा हो तो आगमोक्त विधि जाननेवाले स्पर्श करे उसे गच्छ मानना चाहिए ।
[८७] अनेक विज्ञान आदि गुणयुक्त, लब्धिसम्पन्न और उत्तम कुल में पेदा होनेवाला मुनि यदि प्राणातिपातविरमण आदि मूल गुण रहित हो उसे गच्छ में से बाहर नीकाला जाए