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गच्छाचार-५९
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लिए संयम के लिए, प्राण धारण करने के लिए और धर्मचिन्तवन के लिए, ऐसे उस छ कारण से साधु आहार ग्रहण करे ।
[६०] जो गच्छ में छोटे-बड़े का फर्क जान शके, बड़ो के वचन का सम्मान हो और एक दिन भी पर्याय से बड़ा हो, गुणवृद्ध हो उसकी हीलना न हो, हे गौतम ! उसे हकीकत में गच्छ मानना चाहिए ।
[ ६१] और फिर जिस गच्छ में भयानक अकाल हो वैसे वक्त में प्राण का त्याग हो, तो भी साध्वी का लाया हुआ आहार सोचे बिना न खाए, उसे हे गौतम! वास्तविक गच्छ कहा है ।
[६२] और जिस गच्छ में साध्वीओ के साथ जवान तो क्या, जिसके दांत गिर गए है वैसे बुढ़े मुनि भी आलाप, संलाप न करे और स्त्रीयों के अंग का चिन्तवन न करे, वो हकीकत में गच्छ है ।
[ ६३ ] हे, अप्रमादी मुनि ! तुम अग्नि और विष समान साध्वी का संसर्ग छोड़ दो, क्योंकि साध्वी का अनुसरण करनेवाला साधु थोड़े ही काल में जरुर अपयश पाता है । [६४] बुढ़े, तपस्वी, बहुश्रुत, सर्वजन को मान्य, ऐसे मुनि को भी साध्वी का संसर्ग लोगों की बुराई का आशय बनता है ।
[ ६५ ] तो फिर जो युवान, अल्पश्रुत, थोड़ा तप करनेवाले मुनि हो उसको आर्या का संसर्ग लोकनिन्दा का आशय क्यों न हो ?
[ ६६ ] जो कि खुद दृढ अन्तःकरणवाला हो तो भी संसर्ग बढ़ने से अग्नि की नजदीक जैसे घी पीगल जाता है, वैसे मुनि का चित्त साध्वी के समीप विलीन होता है ।
[ ६७ ] सर्व स्त्री वर्ग की भीतर हंमेशा अप्रमत्तपन से विश्वासरहित व्यवहार करे तो वो ब्रह्मचर्य का पालन कर शकता है, अन्यथा उसके विपरीत प्रकार से व्यवहार करे तो ब्रह्मचर्य पालन नहीं कर शकता ।
[ ६८ ] सर्वत्र सर्व चीज में ममतारहित मुनि स्वाधीन होता है, लेकिन वो मुनि यदि साध्वी के पास में बँधा हो तो वो पराधीन हो जाता है ।
[ ६९ ] लींट में पड़ी मक्खी छूट नहीं शकती, वैसे साध्वी का अनुसरण करनेवाला साधु छूट नहीं शकता ।
[७०] इस जगत में अविधि से साध्वी का अनुसरण करनेवाले साधु को उसके समान दुसरा कोई बन्धन नहीं है और साध्वी को धर्म में स्थापन करनेवाले साधु को उसके समान दुसरी निर्जरा नहीं है ।
[७१] वचन मात्र से भी चारित्र से भ्रष्ट हुए बहुलब्धिवाले साधु को भी जहाँ विधिवत् गुरु से निग्रह किया जाता है उसे गच्छ कहते है ।
[७२] जिस गच्छ में रात को अशनादि लेने में, औदेशिक - अभ्याहृत आदि का नाम ग्रहण करने में भी भय लगे और भोजन अनन्तर पात्रादि साफ करने समान कल्प और अपानादि धोने समान त्रेप उस उभय में सावध हो
[७३] विनयवान हो, निश्चल चित्तवाला हो, हाँसी मजाक करने से रहित, विकथा से मुक्त, बिना सोचे कुछ न करनेवाले, अशनादि के लिए विचरनेवाले या