________________
१४२
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
नमो नमो निम्मलदसणस्स | ३७ | दशाश्रुतस्कन्ध ।
छेदसूत्र-४- हिन्दी अनुवाद
(दसा-१-असमाधिस्थान) संयम के सामान्य दोष या अतिचार को यहाँ 'असमाधि-स्थान' बताया है । जैसे शरीर की समाधि-शान्ति पूर्ण अवस्था में मामूली बिमारी या दर्द बाधक बनते है । काँटा लगा हो या दाँत, कान, गले में कोई दर्द हो या शर्दी जैसा मामूली व्याधि हो तो भी शरीर की समाधिस्वस्थता नहीं रहती वैसे संयम में छोटे या अल्प दोष से भी स्वस्थता नहीं रहती । इसलिए इन स्थान को असमाधि स्थान बताए है । जो इस पहली दशा में बयान किए है ।
[१] अरिहंत को मेरे नमस्कार हो, सिद्ध को मेरे नमस्कार हो, आचार्य को मेरे नमस्कार हो, उपाध्याय को मेरे नमस्कार हो, लोक में रहे सभी साधु को मेरे नमस्कार हो, इन पाँचो को किए नमस्कार-सर्व पाप के नाशक है, सर्व मंगल में उत्कृष्ट मंगल है । .
हे आयुष्मान् ! वो निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्वमुख से मैंने ऐसा सुना है ।
[२] यह (जिन प्रवचन में) निश्चय से स्थविर भगवंत ने बीस असमाधि स्थान बताए है । स्थविर भगवंत ने कौन-से बीस असमाधि स्थान बताए है ?
१. अति शीघ्र चलनेवाले होना ।
२. अप्रमार्जिताचारी होना - रजोहरण आदि से प्रमार्जन किया न हो ऐसे स्थान में चलना (बैठना-सोना आदि) ।
३. दुष्प्रमार्जिताचारी होना - उपयोग रहितपन से या इधर-उधर देखते-देखते प्रमार्जना करना ।
४. अधिक शय्या-आसन रखना, शरीर प्रमाण लम्बाईवाली शय्या, आतापना-स्वाध्याय आदि जिस पर किया जाए वो आसन । वो प्रमाण से ज्यादा रखना ।
५. दीक्षापर्याय में बड़ो के सामने बोलना । ६. स्थवीर और उपलक्षण से मुनि मात्र के घात के लिए सोचना । ७. पृथ्विकाय आदि जीव का घात करे । ८. आक्रोश करना, जलते रहना । ९. क्रोध करना, स्व-पर संताप करना । १०. पीठ पीछे निंदा करनेवाले होना । ११. बार-बार निश्चयकारी बोली बोलना । १२. अनुत्पन्न ऐसे नए झगड़े उत्पन्न करना । १३. क्षमापना से उपशान्त किए गए पुराने कलह-झगड़े फिर से उत्पन्न करना । १४. अकाल-स्वाध्याय के लिए वर्जित काल, उसमें स्वाध्याय करना ।