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________________ १९३ [१३५] हे आत्मा ! यदि तूं अपार संसार समान महोदधि के पार होने की इच्छा को रखता हो तो मैं दीर्धकाल तक जिन्दा रहूँ या शीघ्र मर जाऊँ ऐसा निश्चय करके कुछ भी मत सोचना। [१३६] यदि सर्व पापकर्म को वाकई में निस्तार के लिए ईच्छता है तो जिन वचन, ज्ञान, दर्शन, चारित्र और भाव के लिए उद्यमवंत होने के लिए जागृत हो जा ।। [१३७] दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप ऐसे आराधना चार भेद से होती है, और फिर वो आराधना उत्कृष्ट, मध्यम, जघन्य ऐसे तीन भेद से होती है । [१३८] पंड़ित पुरुष चार भेदवाली उत्कृष्ट आराधना का आराधन करके कर्म रज रहित होकर ऊसी भव में सिद्धि प्राप्त करता है-तथा [१३९] चार भेद युक्त जघन्य आराधना का आराधन करके सात या आठ भव संसार में भ्रमण करके मुक्ति पाता है ।। [१४०] मुझे सर्व जीव के लिए समता है, मुझे किसी के साथ वैर नहीं है मैं सर्व जीवो को क्षमा करता हुं हूँ और सर्व जीवो से क्षमा चाहता हुं । [१४१] धीर को भी मरना है और कायर को भी यकीनन मरना है दोनों को मरना तो है फिर धीररूप से मरना ज्यादा उत्तम है । [१४२] सुविहित साधु यह पच्चक्खाण सम्यक् प्रकार से पालन करके वैमानिक देव होता है या फिर सिद्धि प्राप्त करता है । | २६ | महाप्रत्याख्यान-प्रकीर्णक-३-हिन्दी अनुवाद पूर्ण |
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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