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________________ १९२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद [११४] मुझे अरिहंत, सिद्ध, साधु, श्रुत और धर्म मंगलरूप है, उसका शरण पाया हुआ मैं सावध (पापकर्म) को वोसिराता हूँ । [११५-११९] अरिहंत-सिद्ध-आचार्य-उपाध्याय और साधु मेरे लिए मंगलरूप है और अरिहंतादि पांचो मेरे देव स्वरूप है, उन अरिहंतादि पांचो की स्तुति करके मैं मेरे अपने पाप को वोसिराता हूँ। [१२०] सिद्धो का, अरिहंतो का और केवली का भाव से सहारा लेकर या फिर मध्य के किसी भी एक पद द्वारा आराधक हो शकते है । [१२१] और फिर जिन्हें वेदना उत्पन्न हुइ है ऐसे साधु हृदय से कुछ चिन्तवन करे और कुछ आलम्बन करके वो मुनि दुःख को सह ले । [१२२] वेदना पैदा हो तब यह कैसी वेदना ? ऐसा मानकर सहन करे और कुछ आलम्बन करके उस दुःख के बारे में सोचे । [१२३] प्रमाद में रहनेवाले मैंने नरक में उत्कृष्ट पीड़ा अनन्त बार पाईं है । [१२४] अबोधिपन पाकर मैंने यह काम किया और यह पुराना कर्म मैंने अनन्तीबार पाया है । [१२५] उस दुःख के विपाक द्वारा वहाँ वहाँ वेदना पाते हुए फिर भी अचिंत्य जीव कभी पहेले अजीव नहीं हुआ है ।। [१२६] अप्रतिबद्ध विहार, विद्वान मनुष्य द्वारा प्रशंसा प्राप्त और महापुरुष ने सेवन किया हुआ वैसा जिनभाषित जानकर अप्रतिबद्ध मरण अंगीकार कर ले ।। [१२७] जैसे अंतिम काल में अंतिम तीर्थंकर भगवान ने उदार उपदेश दिया वैसे मैं निश्चय मार्गवाला अप्रतिबद्ध मरण अंगीकार करता हूँ । [१२८] बत्तीस भेद से योग संग्रह के बल द्वारा संयम व्यापार स्थिर करके और बारह भेद से तप समान स्नेहपान करके [१२९] संसार रूपी रंग भूमिका में धीरज समान बल और उद्यम समान बख्तर को पहनकर सज्ज हुआ तू मोह समान मल का वध करके आराधना समान जय पताका का हरण कर ले (प्राप्त कर)। [१३०] और फिर संथारा में रहे साधु पुराने कर्म का क्षय करते है । नए कर्म को नहीं बाँधते और कर्म व्याकुलता समान वेलड़ी का छेदन करते है । [१३१] आराधना के लिए सावधान ऐसा सुविहित साधु सम्यक् प्रकार से काल करके उत्कृष्ट तीन भव का अतिक्रमण करके निर्वाण को (मोक्ष) प्राप्त करे । [१३२] उत्तम पुरुष ने कहा हुआ, सत्पुरुष ने सेवन किया हुआ, बहोत कठीन अनसन करके निर्विघ्नरूप से जय पताका प्राप्त करे । [१३३] हे धीर ! जिस तरह वो देश काल के लिए सुभट जयपताका का हरण करता है ऊसी तरह से सूत्रार्थ का अनुसरण करते हुए और संतोष रूपी निश्चल सन्नाह पहनकर सज्ज होनेवाला तुम जयपताका को हर ले । [१३४] चार कषाय, तीन गारव, पाँच इन्द्रिय का समूह और परिसह समान फौज का वध करके आराधना समान जय पताका को हर ले ।
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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