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________________ १९४ नमो नमो निम्मलदंसणस्स २७ भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक- ४ - हिन्दी अनुवाद पूर्ण आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद [१] महाअतिशयवंत और महाप्रभाववाले मुनि महावीरस्वामी की वंदना करके स्वयं को और पर को स्मरण करने के हेतु से मैं भक्त परिज्ञा कहता हूँ । [२] संसार रूपी गहन वन में घूमते हुए पीड़ित जीव जिसके सहारे मोक्ष सुख पाते है उस कल्पवृक्ष के उद्यान समान सुख को देनेवाला जैन शासन जयवंत विद्यमान है । [३] दुर्लभ मनुष्यत्व और जिनेश्वर भगवान का वचन पाकर सत्पुरुष ने शाश्वत सुख के एक रसीक ऐसे और ज्ञान को वशवर्ती होना चाहिए । [४] जो सुख आज होना है वो कल याद करने योग्य होनेवाला है, उसके लिए पंड़ित पुरुष उपसर्ग रहित मोक्ष के सुख की वांछा करता है । [५] पंड़ित पुरुष मानव और देवताओं का जो सुख है उसे परमार्थ से दुःख ही कहते हैं, क्योंकि वो परिणाम से दारुण और अशाश्वत है । इसलिए उस सुख से क्या लाभ ? (यानि वो सुख का कोई काम नहीं है ।) [६] जिनवचन में निर्मल बुद्धिवाले मानव ने शाश्वत सुख के साधन ऐसे जो जिनेन्द्र की आज्ञा का आराधन है, उन आज्ञा पालने के लिए उद्यम करना चाहिए । [७] उन जिनेश्वर ने कहा हुआ ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप उनका जो आराधन है वही यहाँ आज्ञा का आराधन कहा है । [2] दिक्षा पालन में तत्पर (अप्रमत्त) आत्मा भी मरण के अवसर पर सूत्र में कहने के अनुसार आराधना करते हुए पूरी तरह आराधकपन पाता है । [९] मरण समान धर्म नहीं ऐसे धैर्यवंत ने ( वीतराग ने) उस उद्यमवंत का मरण भक्त परिज्ञा प्रकार मरण, इगिनी मरण और पादपोपगम मरण ऐसे तीन प्रकार से कहा है । [१०] भक्त परिज्ञा मरण दो प्रकार का है - सविचार और अविचार । संलेखना द्वारा दुर्बल शरीरवाले उद्यमवंत साधु का सविचार मरण होता है । [११] भक्त परिज्ञा मरण और पराक्रम रहित साधु को संलेखना किए बिना जो मरण होता है वो अविचार भक्त परिज्ञा मरण कहते है । वह अविचार भक्त परिज्ञा मरण को यथामति मैं कहूँगा । [१२] धीरज बल रहित, अकाल मरण करनेवाले और अकृत (अतीचार) के करनेवाले ऐसे निरवद्य वर्तमान काल के यति को उपसर्ग रहित मरण योग्य है । [१३] उपशम सुख के अभिलाषवाला, शोक और हास्य रहित अपने जीवित के लिए आशा रहित, विषय सुख की तृष्णा रहित और धर्म के लिए उद्यम करते हुए जिन्हें संवेग हुआ है ऐसा वह (भक्त परिज्ञा मरण के लिए योग्य है | ) [१४] जिसने मरण की अवस्था निश्चे की है, जिसने संसार का व्याधिग्रस्त और
SR No.009787
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size8 MB
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