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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
(पद-२२-"क्रिया" [५२५] भगवन् ! क्रियाएँ कितनी हैं ? गौतम ! पांच, कायिकी, आधिकरणिकी, प्राद्वेपिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपातक्रिया । कायिकीक्रिया ? गौतम ! दो प्रकार की । अनुपरतकायिकी और दुष्प्रयुक्तकायिकी । आधिकरणिकीक्रिया ? गौतम ! दो प्रकार की है, संयोजनाधिकरणिकी और निर्वर्तनाधिकरणिकी । प्राद्वेषिकीक्रिया ? गौतम तीन प्रकार की है, स्व का, पर का अथवा दोनों का मन अशुभ किया जाता है । पारितापनिकीक्रिया ? गौतम ! तीन प्रकार की है, जिस प्रकार से स्व के लिए, पर के लिए या स्व-पर दोनों के लिए असाता वेदना उत्पन्न की जाती है । प्राणातिपातिक्रिया ? गौतम ! तीन प्रकार की है, जिससे स्वयं को दूसरे को, अथवा स्व-पर दोनों को जीवन से रहित कर दिया जाता है ।
[५२६] भगवन् ! जीव सक्रिय होते हैं, अथवा अक्रिय ? गौतम ! दोनों । क्योंकीगौतम ! जीव दो प्रकार के हैं, संसारसमापन्नक और असंसारसमापन्नक | जो असंसारसमापन्नक हैं, वे सिद्ध जीव हैं । सिद्ध अक्रिय हैं और जो संसारसमापनक हैं, वे दो प्रकार के हैंशैलशीप्रतिपन्नक और अशैलेशीप्रतिपन्नक । जो शैलेशी-प्रतिपन्नक होते हैं, वे अक्रिय हैं और जो अशैलेशी-प्रतिपन्नक हैं, वे सक्रिय होते हैं । क्या जीवों को प्राणातिपात से प्राणातिपातक्रिया लगती है ? हाँ, गौतम ! लगती है । गौतम ! छह जीवनिकायों के विषय में ये क्रिया लगती है । भगवन् ! क्या नारकों को प्राणातिपात से प्राणातिपात क्रिया लगती है ? (हाँ) गौतम! पूर्ववत् । इसी प्रकार निरन्तर वैमानिकों तक का कहना ।
क्या जीवों को मृषावाद से मृषावाद क्रिया लगती है ? हाँ, गौतम ! होती है । गौतम ! सर्वद्रव्यों के विषय में मृषावाद क्रिया लगती है । इसी प्रकार नैरयिकों से लगातार वैमानिकों तक जानना । जीवों को अदत्तादान से अदत्तादानक्रिया लगती है ? हाँ, गौतम ! होती है । गौतम ! ग्रहण और धारण करने योग्य द्रव्यों के विषय में यह क्रिया होती है । इसी प्रकार नैरयिकों से वैमानिकों तक समझना । जीवों को मैथुन से (मैथुन-) क्रिया लगती है ? हाँ, होती है । गौतम ! रूपों अथवा रूपसहगत द्रव्यों के विषय में यह क्रिया लगती है । इसी प्रकार नैरयिकों से निरन्तर वैमानिकों तक कहना । जीवों के परिग्रह से (परिग्रह) क्रिया लगती है ? हाँ, गौतम ! है । गौतम ! समस्त द्रव्यों के विषय में यह क्रिया लगती है । इसी तरह नैरयिकों से वैमानिकों तक कहना । इसी प्रकार क्रोध, यावत् लोभ से, राग, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, अरति-रति, मायामृषा एवं मिथ्यादर्शनशल्य से समस्त जीवों, नारकों यावत् वैमानिकों तक कहना । ये अठारह दण्डक हुए ।
[५२७] भगवन् ! (एक) जीव प्राणातिपात से कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है ? गौतम ! सात अथवा आठ । इसी प्रकार एक नैरयिक से एक वैमानिक देव तक कहना । भगवन् ! (अनेक) जीव प्राणातिपात से कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधते हैं ? गौतम ! सप्तविध या अष्टविध । भगवन ! (अनेक) नारक प्राणातिपात से कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधते हैं ? गौतम ! सप्तविध अथवा (अनेक नारक) सप्तविध और (एक नारक) अष्टविध, अथवा (अनेक नारक) सप्तविध और (अनेक) अष्टविध कर्मबन्धक होते है । इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमार तक कहना । पृथ्वी यावत् वनस्पतिकायिक के विषय में औधिक जीवों के समान