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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
निःसरण करता है ।
भगवन् ! जीव भाषा के रूप में गृहीत जिन द्रव्यों को निकालता है, उन द्रव्यों को भिन्न निकालता है, अथवा अभिन्न ? गौतम ! भिन्न द्रव्यों को निकालता है, अभिन्न द्रव्यों को भी निकालता है । जिन भिन्न द्रव्यों को निकालता है, वे द्रव्य अनन्तगुणवृद्धि से वृद्धि को प्राप्त होते हुए लोकान्त को स्पर्श करते हैं तथा जिन अभिन्न द्रव्यों को निकालता है, वे द्रव्य असंख्यात अवगाहनवर्गणा तक जा कर भेद को प्राप्त हो जाते हैं । फिर संख्यात योजनों तक आगे जाकर विध्वंस होते है ।
[३९४] भगवन् ! उन द्रव्यों के भेद कितने हैं ? गौतम ! पांच-खण्डभेद, प्रतरभेद, चूर्णिकाभेद, अनुतटिकाभेद और उत्कटिका भेद ।
वह खण्डभेद किस प्रकार का होता है ? खण्डभेद (वह है), जो लोहे, रांगे, शीशे, चांदी अथवा सोने के खंडों का, खण्डक से भेद करने पर होता है । वह प्रतरभेद क्या है ? जो बांसों, बेंतों, नलों, केले के स्तम्भों, अभ्रक के पटलों का प्रतर से भेद करने पर होता है। वह चूर्णिकाभेद क्या है ? जो तिल, मूंग, उड़द, पिप्पली, कालीमिर्च के चूर्णिका से भेद करने पर होता है । वह अनुतटिकाभेद क्या है ? जो कूपों, तालाबों, ह्रदों, नदियों, वावड़ियों, पुष्करिणियों, दीर्घिकाओं, गुंजालिकाओं, सरोवरों, और नाली के द्वारा जल का संचार होनेवाले पंक्तिबद्ध सरोवरों के अनुतटिकारूप में भेद होता है । वह उत्कटिकाभेद कैसा है ? मूषों, मगूसों, तिल की फलियों, मूंग की फलियों, उड़द की फलियों अथवा एरण्ड के बीजों के फटने या फाड़ने से जो भेद होता है, वह उत्कटिकाभेद है ।
भगवन् ! खण्डभेद से, प्रतरभेद से, चूर्णिकाभेद से, अनुतटिकाभेद से और उत्कटिकाभेद से भिदने वाले इन भाषाद्रव्यों में कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े भाषाद्रव्य उत्कटिकाभेद से, उनसे अनन्तगुणे अनुतटिकाभेद से, उनसे चूर्णिकाभेद से अनन्तगुणे हैं, उनसे अनन्तगुणे प्रतरभेद से और उनसे भी अनन्तगुणे अधिक खण्डभेद से भिन्न होनेवाले द्रव्य हैं ।
[३९५] भगवन् ! नैरयिक जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करता है, उन्हें स्थित (ग्रहण करता) है अथवा अस्थित ? गौतम ! (औधिक) जीव के समान नैरयिक में भी कहना। इसी प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़ कर वैमानिकों तक कहना । जीव जिन द्रव्यों को भाषा के रूप में ग्रहण करते हैं, क्या (वे) उन स्थित द्रव्यों को ग्रहण करते हैं, अथवा अस्थित द्रव्यों को ? गौतम ! (वे स्थित भाषाद्रव्यों को ग्रहण करते हैं ।) जिस प्रकार एकत्व-एकवचनरूप में कथन किया गया था, उसी प्रकार पृथक्त्व रूप में वैमानिक तक समझना ।
[३९६] भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को सत्यभाषा के रूप में ग्रहण करता है, क्या (वह) उन स्थितद्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा अस्थितद्रव्यों को ? गौतम ! औधिक जीव के समान कहना । विशेष यह है कि विकलेन्द्रियों के विषय में पृच्छा नहीं करना । जैसे सत्यभाषाद्रव्यों के ग्रहण के विषय में कहा है, वैसे ही मृषा तथा सत्यामृषाभाषा में भी कहना। असत्यामृषाभाषा में भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह है कि असत्यामृषाभाषा के ग्रहण में विकलेन्द्रियों की भी पृच्छा करना-भगवन् ! विकलेन्द्रिय जीव जिन द्रव्यों को असत्यामृषाभाषा के रूप में ग्रहण करता है, क्या वह उन स्थितद्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा अस्थितद्रव्यों