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प्रज्ञापना-११/-/३९६
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को ? गौतम ! औधिक दण्डक के समान समझना इस प्रकार एकत्व और पृथक्त्व के ये दस दण्डक कहना ।
भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को सत्यभाषा के रूप में ग्रहण करता है, क्या उनका वह सत्यभाषा, मृषाभाषा, सत्यामृषाभाषा अथवा असत्यामृषाभाषा के रूप में निकालता है ? गौतम ! वह केवल सत्यभाषा के रूप में निकालता है । इसी प्रकार वैमानिक तक एकेन्द्रिय
और विकलेन्द्रिय को छोड़ कर कहना | भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को मृषाभाषा के रूप में ग्रहण करता है, क्या उन्हें वह सत्यभाषा के रूप में अथवा यावत् असत्यामृषाभाषा के रूप में निकालता है ? गौतम ! केवल मृषाभाषा के रूप में ही निकालता है । इसी प्रकार सत्यामृषाभाषा के रूप में गृहीत द्रव्यों में भी समझना । असत्यामृषाभाषा के रूप में गृहीत द्रव्यों में भी इसी प्रकार समझना । विशेषता यह कि असत्यामृषाभाषा के रूप में गृहीत द्रव्यों के विषय में विकलेन्द्रियों की भी पृच्छा करना । जिस भाषा के रूप में द्रव्यों को ग्रहण करता है, उसी भाषा के रूप में ही द्रव्यों को निकालता है । इस प्रकार एकत्व और पृथक्त्व के ये आठ दण्डक कहने चाहिए।
[३९७] भगवन् ! वचन कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! सोलह प्रकार के । एकवचन, द्विवचन, बहुवचन, स्त्रीवचन, पुरुषवचन, नपुंसकवचन, अध्यात्मवचन, उपनीतवचन, अपनीतवचन, उपनीतापनीतवचन, अपनीतोपनीतवचन, अतीतवचन, प्रत्युत्पन्नवचन, अनागतवचन, प्रत्यक्षवचन और परोक्षवचन । इस प्रकार एकवचन (से लेकर) परोक्षवचन (तक) बोलते हुए की क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है ? यह भाषा मृषा तो नहीं है ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही है ।
[३९८] भगवन् ! भाषाजात कितने हैं ? गौतम ! चार । सत्या, मृषा, सत्यामृषा और असत्यामृषा । भगवन् ! इन चारों भाषा-प्रकारों को बोलता हुआ (जीव) आराधक होता है, अथवा विराधक ? गौतम ! उपयोगपूर्वक बोलनेवाला आराधक होता है, विराधक नहीं । उससे पर जो असंयत, अविरत, पापकर्म का प्रतिघात और प्रत्याख्यान न करने वाला सत्यभाषा, मृषाभाषा, सत्यामृषा और असत्यामृषा भाषा बोलता हुआ आराधक नहीं, विराधक है ।
[३९९] भगवन् ! इन सत्यभाषक, मृषाभाषक, सत्यामृषाभाषक और असत्यामृषाभाषक तथा अभाषक जीवों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े जीव सत्यभाषक हैं, उनसे असंख्यातगुणे सत्यामृषाभाषक हैं, उनसे मृषाभाषक असंख्यातगुणे हैं, उनसे असंख्यातगुणे असत्यामृषाभाषक जीव हैं और उनसे अभाषक जीव अनन्तगुणे हैं । पद-११-का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(पद-१२-'शरीर' [४००] भगवन् ! शरीर कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पांच-औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण । भगवन् ! नैरयिकों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन वैक्रिय, तैजस और कार्मण शरीर । इसी प्रकार असुरकुमारों से लेकर स्तनितकुमारों तक समझना । पृथ्वीकायिकों के तीन शरीर हैं, औदारिक, तैजस एवं कार्मणशरीर । इसी प्रकार वायुकायिकों