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प्रज्ञापना-११/-/३९१
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को ग्रहण नहीं करता, दो यावत् चार स्पर्शवाले द्रव्यों को ग्रहण करता है, किन्तु पांच यावत् आठ स्पर्शवाले को ग्रहण नहीं करता । सर्वग्रहण की अपेक्षा से नियमतः चार स्पर्श वाले भाषाद्रव्यों को ग्रहण करता है; शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष । स्पर्श से जिन शीतस्पर्श वाले भाषाद्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या (वह) एकगुण शीतस्पर्श वाले ग्रहण करता है, यावत् अनन्तगुण ? गौतम ! (वह) एकगुण शीत द्रव्यों को भी ग्रहण करता है, यावत् अनन्तगुण भी । इसी प्रकार उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श वाले में जानना ।
भगवन् ! जिन एकगुण कृष्णवर्ण से लेकर अनन्तगुण रूक्षस्पर्श तक के द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या (वह) उन स्पृष्ट द्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा अस्पृष्ट द्रव्यों को ? गौतम ! (वह) स्पृष्ट भाषाद्रव्यों को ही ग्रहण करता है । भगवन् ! जिन स्पृष्ट द्रव्यों को जीव ग्रहण करता है, क्या वह अवगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा अनवगाढ द्रव्यों को ? गौतम ! वह अवगाढ द्रव्यों को ही ग्रहण करता है | भगवन् ! जिन अवगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या (वह) अनन्तरावगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा परम्परावगाढ द्रव्यों को? गौतम ! (वह) अनन्तरावगाढ द्रव्यों को ही ग्रहण करता है । भगवन् जिन अनन्तरावगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है, क्या (वह) अणुरूप द्रव्यों को ग्रहण करता है, अथवा बादर द्रव्यों को? गौतम ! दोनो को । भगवन् जिन अणुद्रव्यों को (जीव) ग्रहण करता है, क्या उन्हें ऊर्ध्व (दिशा में) स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, अधः दिशा में अथवा तिर्यक् दिशा में स्थित द्रव्यों को ? गौतम ! को तीनो दिशा में से ग्रहण करता है । भगवन् ! (जीव) जिन (अणुद्रव्यों) को तीनो दिशा में से ग्रहण करता है, क्या वह उन्हें आदि में ग्रहण करता है, मध्य में अथवा अन्त में ? गौतम ! वह उन को तीनो में से ग्रहण करता है । जिन (भाषा) को जीव आदि, मध्य और अन्त में ग्रहण करता है, क्या वह उन स्वविषयक द्रव्यों को ग्रहण करता है अथवा अविषक द्रव्यों को ? गौतम ! वह स्वविषयक द्रव्यों को ही ग्रहण करता है । भगवन् ! जिन स्वविषयक द्रव्यों को जीव ग्रहण करता है, क्या वह उन्हें आनुपूर्वी से ग्रहण करता है, अथवा अनानुपूर्वी से ? गौतम ! ऊनको आनुपूर्वी से ही ग्रहण करता है । भगवन् ! जिन द्रव्यों को जीव आनुपूर्वी से ग्रहण करता है, क्या उन्हें तीन दिशाओं से ग्रहण करता है, यावत् छह दिशाओं से ? गौतम ! नियमतः छह दिशाओं से ग्रहण करता है ।
[३९२] स्पृष्ट, अवगाढ, अनन्तरावगाढ, अणु, बादर, ऊर्ध्व, अधः, आदि, स्वविषयक, आनुपूर्वी तथा नियम से छह दिशाओं से (भाषायोग्य द्रव्यों को जीव ग्रहण करता है ।)
[३९३] भगवन् ! जिन द्रव्यों को जीव भाषा के रूप में ग्रहण करता है, क्या (वह) उन्हें सान्तर ग्रहण करता है या निरन्तर ? गौतम ! दोनो । सान्तर ग्रहण करता हुआ जघन्यतः एक समय का तथा उत्कृष्टतः असंख्यात समय का अन्तर है और निरन्तर ग्रहण करता हुआ जघन्य दो समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय प्रतिसमय बिना विरह के ग्रहण करता है । भगवन् ! जिन द्रव्यों को जीव भाषा के रूप में ग्रहण करके निकालता है, क्या वह उन्हें सान्तर निकालता है या निरन्तर ? गौतम ! सान्तर निकालता है, निरन्तर नहीं । सान्तर निकालत हुआ जीव एक समय में द्रव्यों को ग्रहण करता है और एक समय से निकालता है । इस ग्रहण और निःसरण से जघन्य दो समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय के अन्तर्मुहूर्त तक ग्रहण और