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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
चारो तरफ से परिक्षिप्त है । इत्यादि कथन "जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति" सूत्रानुसार यावत् १५६००० नदीयां से युक्त है, यहां तक कहना । यह जंबूद्वीप पांच चक्र भागो से संस्थित है । हे भगवन् जंबूद्वीप पांच चक्र भागो से किस प्रकार संस्थित है ? जब दोनो सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल से उपसंक्रमण करके गति करते है, तब जंबूद्वीप के तीनपंचमांश चक्र भागो को अवभासित यावत् प्रकाशित करते है, एक सूर्य द्व्यर्द्ध पंच चक्रवाल भाग को और दूसरा अन्य द्वयर्द्ध चक्रवाल भाग को अवभासीत यावत् प्रकाशीत करता है । उस समय परम उत्कर्ष प्राप्त अठ्ठारह उत्कृष्ट मुहूर्त का दिन और जघन्या बारह मुहूर्त की रात्रि होती है । जब दोनो सूर्य सर्वबाह्य मंडल में उपसंक्रमण करके गति करते है, तब जंबूद्वीप के दो चक्रवाल भाग को अवभासीत यावत् प्रकाशीत करते है, अर्थात् एक सूर्य एक पंचम भाग को और दूसरा सूर्य दुसरे एकपंचम चक्रवाल भाग को अवभासित यावत् प्रकाशीत करता है, उस समय उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है ।
प्राभृत- ३ - का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
प्राभृत-४
[३९] श्वेत की संस्थिति किस प्रकार की है ? श्वेत संस्थिति दो प्रकार की है-चंद्रसूर्य की संस्थिति और तापक्षेत्र की संस्थिति । चन्द्र सूर्य की संस्थिति के विषय में यह सोलह प्रतिपत्तियां (परमतवादी मत ) है । कोई कहता है कि (१) चन्द्र-सूर्य की संस्थिति समचतुरस्र है । (२) विषम चतुरस्र है । (३) समचतुष्कोण है । (४) विषम चतुष्कोण है । ( ५ ) समचक्रवाल है । (६) विषम चक्रवाल है । (७) अर्द्धचक्रवाल है । (८) छत्राकार है । (९) गेहाकार है । (१०) गृहापण संस्थित है । ( ११ ) प्रासाद आकार है । (१२) गोपुराकार है। (१३) प्रेक्षागृहाकार है । (१४) वल्लभी संस्थित है । (१५) हर्म्यतल संस्थित है । (१६) सोलहवां मतवादी चन्द्रसूर्य की संस्थिति वालाग्रपोतिका आकार की बताते है । इसमें जो संस्थिति को समचतुरस्त्राकार की बताते है वह कथन नय द्वारा ज्ञातव्य है, अन्य से नहीं ।
तापक्षेत्र की संस्थिति के सम्बन्ध में भी सोलह प्रतिपत्तियां है । अन्य मतवादी अपना अपना कथन इस प्रकार से बताते है - (१ से ८) तापक्षेत्र संस्थिति गेहाकार यावत् वालाग्रपोतिका आकार की है । (९) जंबूद्वीप की संस्थिति के समान है । (१०) भारत वर्ष की संस्थिति के समान है । (११) उद्यान आकार है । (१२) निर्याण आकार है । (१३) एकतः निपध संस्थान संस्थित है । (१४) उभयतः निषध संस्थान संस्थित है । (१५) श्वेक पक्षि के आकार की है । (१६) श्वेनक पक्षी के पीठ के आकार की है ।
भगवंत फरमाते है कि यह तापक्षेत्र संस्थिति उर्ध्वमुख कलंब के पुष्प के समान आकारवाली है । अंदर से संकुचित-गोल एवं अंक के मुख के समान है और बाहर से विस्तृत - पृथुल एवं स्वस्ति के मुख के समान है । उसके दोनो तरफ दो बाहाए अवस्थित है । वह बाहाए आयाम से ४५-४५ हजार योजन है । वह बाहाए सर्वाभ्यन्तर और सर्वबाह्य है । इन दोनो बाहा का माप बताते है- जो सर्वाभ्यन्तर बाहा है वह मेरु पर्वत के समीप में ९४८६ योजन एवं एक योजन के नव या दस भाग योजन परिक्षेप से कही है । मंदरपर्वत के परिक्षेप