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________________ चन्द्रप्रज्ञप्ति २/३/३७ २०३ है, तब एक योजन के अठ्ठारह अठ्ठारह साठ भाग से एकएक मंडल में मुहूर्त गति को बढाते बढाते ८४ योजना में किंचित् न्यून पुरुषछाया की हानि करते-करते सर्वबाह्य मंडल में गति करता है । जब वह सर्वबाह्य मंडल में गमन करता है, तब ५३०५ योजन एवं एक योजन के पन्द्रह षष्ठ्यंश भाग एक एक मुहूर्त में गमन करता है, उस समय यहां रहे हुए मनुष्यो को ३१८३१ योजन एवं एक योजन के तीस षष्ठ्यंश भाग प्रमाण से सूर्य दृष्टिगोचर होता है उस समय उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है । इस प्रकार पहले छ मास होते है, छ मास का पर्यवसान होता है । दुसरे छ मास में सूर्य सर्वबाह्य मंडल से सर्व अभ्यन्तर मंडल की तरफ प्रवेश करने का आरंभ करता है । प्रथम अहोरात्र में जब अनन्तर मंडल में प्रवेश करता है, तब ५३०४ योजन एवं एक योजन के सत्तावन षष्ठ्यंश भाग से एकएक मुहूर्त में गमन करता है । उस समय यहां रहे हुए मनुष्य को ३१९१६ योजन तथा एक योजन के उनचालीश षष्ठ्यंश भाग को तथा साठ को एकसठ भाग से छेदकर साठ चूर्णिका भागोसे सूर्य दृष्टिगोचर होता है । रात्रिदिन पूर्ववत् जानना । इसी क्रमसे प्रवेश करता हुआ सूर्य अनन्तर - अनन्तर मंडल में उपसंक्रमण करके प्रवेश करता है, तव एक योजन के अठ्ठारह अठ्ठारह पष्ठयंश भाग एक मंडल में मुहूर्त गति से न्यून करते हुए और किंचित् विशेष ८५-८५ योजन की पुरुषछाया को बढाते हुए सर्वाभ्यन्तर मंडल को प्राप्त करते है । तब ५२५१ योजन एवं एक योजन के उनतीसषष्ठ्यंश भाग से एकएक मुहूर्त में गति करता है; उस समय यहां रहे हुए मनुष्यो को ४७२६२ एवं एक योजन के ईक्कीस षष्ठ्यंश भाग से सूर्य दृष्टिगोचर होता है । तब उत्कृष्ट अठ्ठारह मुहूर्त का दिन और जघन्या बारहमुहूर्त की रात्रि होती है । यह हुए दुसरे छह मास । यह हुआ छह माल का पर्यवसान और यह हुआ आदित्य संवत्सर । प्राभृत- २ - का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण प्राभृत- ३ [३८] चंद्र-सूर्य कितने क्षेत्र को अवभासित- उद्योतित- तापित एवं प्रकाशीत करता है ? इस विषय में बारह प्रतिपत्तियां है । वह इस प्रकार - (१) गमन करते हुए चंद्र-सूर्य एक द्वीप और एक समुद्र को अवभासित यावत् प्रकाशित करते है । (२) तीन द्वीप - तीन समुद्र को अवभासित यावत् प्रकाशीत करते है । (३) अर्द्ध चतुर्थद्वीप - अर्द्ध चतुर्थ समुद्र को अवभासित आदि करते है । (४) सात द्वीप - सात समुद्रो को अवभासित आदि करते है । (५) दश द्वीप और दश समुद्र को अवभासित आदि करते है ( ६ ) बारह द्वीप - बारह समुद्र को अवभासित आदि करते है । (७) बयांलीस द्वीप -बयांलीस समुद्र को अवभासित आदि करते है । (८) बहत्तर द्वीप बहत्तर समुद्र को अवभासित आदि करते है । (९) १४२-१४२ द्वीप समुद्रो को अवभासित आदि करते है । (१०) १७२ - १७२ द्वीप समुद्रो को अवभासित आदि करते है । (११) १०४२ - १०४२ द्वीप समुद्र को अवभासित आदि करते है । (१२) चंद्र-सूर्य १०७२१०७२ द्वीप - समुद्रो को अवभासित यावत् प्रकाशीत करते है । भगवंत फरमाते है कि यह जंबूद्वीप सर्वद्वीप समुद्रो से घीरा हुआ है । एक जगति से
SR No.009786
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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