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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद गये गेय को, राग से अनुरक्त, उर-कण्ठ-शिर ऐसे त्रिस्थान शुद्ध गेय को, मधुर, सम, सुललित, एक तरफ बांसुरी और दूसरी तरफ तन्त्री बजाने पर दोनों में मेल के साथ गाया गया गेय, तालसंप्रयुक्त, लयसंप्रयुक्त, ग्रहसंप्रयुक्त, मनोहर, मृदु और रिभित पद संचार वाले, श्रोताओं को
आनन्द देनेवाले, अंगों के सुन्दर झुकाव वाले, श्रेष्ठ सुन्दर ऐसे दिव्य गीतों के गानेवाले उन किन्नर आदि के मुख से जो शब्द निकलते हैं, वैसे उन तृणों और मणियों का शब्द होता है क्या ? हां गौतम ! उन तृणों और मणियों के कम्पन से होने वाला शब्द इस प्रकार का होता है ।
[१६५] उस वनखण्ड के मध्य में उस-उस भाग में उस उस स्थान पर बहुत-सी छोटी-छोटी चौकोनी वावडियाँ हैं, गोल-गोल अथवा कमलवाली पुष्करिणियाँ हैं, जगह-जगह नहरों वाली दीर्घिकाएँ हैं, टेढ़ीमेढ़ी गुंजालिकाएँ हैं, जगह-जगह सरोवर हैं, सरोवरों की पंक्तियां हैं, अनेक सरसर पंक्तियां और बहुत से कुओं की पंक्तियाँ हैं । वे स्वच्छ हैं, मृदु पुद्गलों से निर्मित हैं । इनके तीर सम हैं, इनके किनारे चांदी के बने हैं, किनारे पर लगे पाषाण वज्रमय हैं । इनका तलभाग तपनीय का बना हुआ है । इनके तटवर्ती अति उन्नत प्रदेश वैडूर्यमणि एवं स्फटिक के बने हैं । मक्खन के समान इनके सुकोमल तल हैं । स्वर्ण और शुद्ध चांदी की रेत है । ये सब जलाशय सुखपूर्वक प्रवेश और निष्क्रमण योग्य हैं । नाना प्रकार की मणियों से इनके घाट मजबूत बने हुए हैं । कुएं और वावड़ियां चौकोन हैं । इनका वप्र क्रमशः नीचे-नीचे गहरा होता है और उनका जल अगाध और शीतल है । इनमें जो पद्मिनी के पत्र, कन्द और पद्मनाल हैं वे जल से ढंके हुए हैं । उनमें बहुत से उत्पल, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगन्धिक, पुण्डरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र फूले रहते हैं और पराग से सम्पन्न हैं, ये सब कमल भ्रमरों से परिभुज्यमान हैं अर्थात भंवरे उनका रसपान करते रहते हैं । ये सब जलाशय स्वच्छ और निर्मल जल से परिपूर्ण हैं । परिहत्थ मत्स्य और कच्छप इधर-उधर घूमते रहते हैं, अनेक पक्षियों के जोड़े भी इधर-उधर भ्रमण करते रहते हैं । इन जलाशयों में से प्रत्येक जलाशय वनखण्ड से चारों ओर से घिरा हुआ है और प्रत्येक जलाशय पद्मववेदिका से युक्त है । इन जलाशयों में से कितनेक का पानी आसव जैसे स्वादवाला है, किन्हीं का वारुणसमुद्र के जल जैसा है, किन्ही का जल दूध जैसे स्वादवाला है, किन्हीं का जल घी जैसे स्वाद वाला है, किन्हीं का जल इक्षुरस जैसा है, किन्हीं के जल का स्वाद अमृतरस जैसा है और किन्ही का जल स्वभावतः उदकरस जैसा है । ये सब प्रासादीय दर्शनीय हैं, अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं ।
__उन छोटी वावड़ियों यावत् कूपों में यहाँ वहाँ उन-उन भागों में बहुत से विशिष्ट स्वरूप वाले त्रिसोपान कहे गये हैं । वज्रमय उनकी नींव है, रिष्टरत्नों के उसके पाये हैं, वैडूर्यरत्न के स्तम्भ हैं, सोने और चांदी के पटिये हैं, वज्रमय उनकी संधियां हैं, लोहिताक्ष रत्नों की सूइयां हैं, नाना मणियों के अवलम्बन हैं नाना मणियों की बनी हुई आलम्बन बाहा हैं । उन विशिष्ट त्रिसोपानों के आगे प्रत्येक के तोरण कहे गये हैं । वे तोरण नाना प्रकार की मणियों के बने हैं । वे तोरण नाना मणियों से बने हुए स्तंभों पर स्थापित हैं, निश्चलरूप से रखे हुए हैं, अनेक प्रकार की रचनाओं से युक्त मोती उनके बीच-बीच में लगे हुए हैं, नाना प्रकार के ताराओं से वे तोरण उपचित हैं । उन तोरणों में ईहामृग, बैल, घोड़ा, मनुष्य, मगर, पक्षी, व्याल, किन्नर,