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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
हे भगवन् ! दाक्षिणात्य गजकर्ण मनुष्यों का गजकर्ण द्वीप कहाँ है ? गौतम ! आभाषिक द्वीप के दक्षिण-पूर्वी चरमान्त से लवणसमुद्र में चार सौ योजन आगे जाने पर गजकर्म द्वीप है । शेष वर्णन हयकर्ण समान । गौतम ! वैषाणिक द्वीप के दक्षिण-पश्चिमी चरमांत से लवणसमुद्र में चार सौ योजन जाने पर वहाँ गोकर्णद्वीप है । शेष पूर्ववत् ।
भगवन् ! शष्कुलिकर्ण मनुष्यों की पृच्छा ? गौतम ! लांगलिक द्वीप के उत्तर-पश्चिमी चरमान्त से लवणसमुद्र में चार सौ योजन जाने पर शष्कुलिकर्ण द्वीप है । शेष पूर्ववत् । गौतम ! हयकर्णद्वीप के उत्तरपूर्वी चरमांत से पांच सौ योजन आगे जाने पर आदर्शमुख द्वीप है, वह पांच सौ योजन का लम्बा-चौड़ा है । अश्वमुख आदि चार द्वीप छह सौ योजन आगे जाने पर, अश्वकर्ण आदि चार द्वीप सात सौ योजन आगे जाने पर, उल्कामुख आदि चार द्वीप आठ सौ योजन आगे जाने पर और घनदंत आदि चार द्वीप नौ सौ योजन आगे जाने पर वहाँ स्थित हैं ।
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[१४७] एकोरुक द्वीप आदि की परिधि नौ सौ उनपचास योजन से कुछ अधिक, हयकर्ण आदि की परिधि बारह सौ पेंसठ योजन से कुछ अधिक जानना ।
[१४८] आदर्शमुख आदि की परिधि १५८१ योजन से कुछ अधिक है । इस प्रकार इस क्रम से चार-चार द्वीप एक समान प्रमाण वाले हैं । अवगाहन, विष्कंभ और परिधि में अन्तर समझना । प्रथम द्वितीय तृतीय चतुष्क का अवगाहन, विष्कंभ और परिधि का कथन कर दिया गया है । चौथे चतुष्क में ६०० योजन का आयाम - विष्कंभ और १८९७ योजन से कुछ अधिक परिधि है । पंचम चतुष्क में ७०० योजन का आयाम - विष्कंभ और २२१३ योजन से कुछ अधिक की परिधि है । छठे चतुष्क में ८०० योजन का आयाम - विष्कंभ और २५२९ योजन से कुछ अधिक की परिधि है । सातवें चतुष्क में नौ सौ योजन का आयाम - विष्कंभ और २८४५ योजन से कुछ विशेष की परिधि है ।
[१४९] जिसका जो आयाम - विष्कंभ है वही उसका अवगाहन है । ( प्रथम चतुष्क से द्वितीय चतुष्क की परिधि ३१६ योजन अधिक, इसी क्रम से ३१६-३१६ योजन की परिधि बढ़ाना चाहिए ।
[१५०] आयुष्मन् श्रमण ! शेष वर्णन एकोरुकद्वीप की तरह शुद्धदंतद्वीप पर्यन्त समझ लेना यावत् वे मनुष्य देवलोक में उत्पन्न होते हैं । हे भगवन् ! उत्तरदिशा के एकोरुक मनुष्यों का एकोरुक नामक द्वीप कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर में शिखरी वर्षधरपर्वत के उत्तरपूर्वी चरमान्त से लवणसमुद्र में तीन सौ योजन आगे जाने पर एकोरुक द्वीप है - इत्यादि सब वर्णन दक्षिणदिशा के एकोरुक द्वीप की तरह जानना, अन्तर यह है कि यहाँ शिखरी वर्षधरपर्वत की विदिशाओं में ये स्थित हैं, ऐसा कहना । इस प्रकार शुद्धदंतद्वीप पर्यन्त कथन करना ।
[१५१] हे भगवन् ! अकर्मभूमिक मनुष्य कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! तीस प्रकार के पांच हैमवत में इत्यादि प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार जानना । हे भगवन् ! कर्मभूमिक मनुष्यों के कितने प्रकार हैं ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार के पांच भरत, पांच ऐरवत और पांच महाविदेह के मनुष्य । वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं, यथा-आर्य और म्लेच्छ । इस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र अनुसार कहना । उसके साथ ही मनुष्यों का कथन सम्पूर्ण हुआ ।