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जीवाजीवाभिगम - ३ / मनुष्य / १४५
मस्तकशूल, पार्श्वशूल, कुक्षिशूल, योनिशूल ग्राममारी यावत् सन्निवेशमारी और इनसे होनेवाला प्राणों का क्षय यावत् दुःखरूप उपद्रवादि हैं क्या ? हे आयुष्मन् श्रमण ! ये सब उपद्रव वहाँ नहीं हैं ।
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हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में अतिवृष्टि, अल्पवृष्टि, सुवृष्टि, दुर्वृष्टि, उद्वाह, प्रवाह, उदकभेद, उदकपीड़ा, गांव को बहा ले जाने वाली वर्षा यावत् सन्निवेश को बहा ले जाने वाली वर्षा और उससे होने वाला प्राणक्षय यावत् दुःखरूप उपद्रवादि होते हैं क्या ? हे आयुष्मन् श्रमण ! ऐसा नहीं होता । हे भगवन् ! एकोरुक द्वीप में लोहे - तांबे-सीसे सोने - रत्नों और वज्रहीरों की खान, वसुधारा, सोने की वृष्टि, चांदी की वृष्टि, रत्नों की वृष्टि वज्रों - हीरों की वृष्टि, आभरणों की वृष्टि, पत्र- पुष्प फल- बीज - माल्य गन्ध-वर्ण-चूर्ण की वृष्टि, दूध की वृष्टि, रत्नों की वर्षा, हिरण्य- सुवर्ण यावत् चूर्णों की वर्षा, सुकाल, दुष्काल, सुभिक्ष, दुर्भिक्ष, सस्तापन, मंहगापन, क्रय विक्रय, सन्निधि, संनिचय, निधि, निधान, बहुत पुराने, जिनके स्वामी नष्ट हो गये, जिनमें नया धन डालने वाला कोई न हो । जिनके गोत्री जन सब मर चुके हों ऐसे जो गांवों में, नगर में, आकर-खेट-कर्वट मडंब - द्रोणमुख-पट्टन, आश्रम, संबाह और सन्निवेशों में रखा हुआ, श्रृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख महामार्गों पर, नगर की गटरों में, श्मशान में, पहाड़ की गुफाओं में, ऊँचे पर्वतों के उपस्थान और भवनगृहों में रखा हुआ धन है क्या ? हे गौतम! उक्त खान आदि और ऐसा धन वहाँ नहीं है ।
हे भगवन् ! एकोरुकद्वीप के मनुष्यों की स्थिति कितनी है ? हे गौतम! जघन्य से असंख्यातवां भाग कम पल्योपम का असंख्यातवां भाग और उत्कर्ष से पल्योपम का असंख्यातवां भागप्रमाण स्थिति है । हे भगवन् ! वे मनुष्य मरकर कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? हे गौतम ! वे मनुष्य छह मास की आयु शेष रहने पर एक मिथुनक को जन्म देते हैं । उन्नयासी रात्रिदिन तक उसका संरक्षण और संगोपन करते हैं । ऊर्ध्वश्वास या निश्वास लेकर या खांसकर या छींककर बिना किसी कष्ट, दुःख या परिताप के सुखपूर्वक मृत्यु के अवसर पर मरकर किसी भी देवलोक में देव के रूप में उत्पन्न होते हैं ।
हे भगवन् ! दक्षिण दिशा के आभाषिक मनुष्यों का आभाषिक नाम का द्वीप कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के दक्षिण में चुल्लहिमवान् वर्षधरपर्वत के दक्षिण-पूर्व चरमांत से लवणसमुद्र में तीन सौ योजन जाने पर आभाषिक द्वीप है । शेष समस्त वक्तव्यता कोरुक द्वीप की तरह कहना । हे भगवन् ! दाक्षिणात्य लांगलिक मनुष्यों का लांगलिक द्वीप कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के दक्षिण में और चुल्लहिमवन्त वर्षधर पर्वत के उत्तर पूर्व चरमांत से लवणसमुद्र में तीन सौ योजन जाने पर लांगलिक द्वीप है । शेष वक्तव्यता एकरुक द्वीपवत् । हे भगवन् ! दाक्षिणात्य वैषाणिक मनुष्यों का वैषाणिक द्वीप कहाँ है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के दक्षिण में और चुल्लहिमवन्त वर्षधर पर्वत के दक्षिणपश्चिम के चरमांत से तीन सौ योजन जाने पर वैषाणिक द्वीप है । शेष पूर्ववत् ।
[१४६] हे भगवन् ! दाक्षिणात्य हयकर्ण मनुष्यों का हयकर्ण नामक द्वीप कहाँ कहा गया है ? गौतम ! एकोरुक द्वीप के उत्तरपूर्वी चरमान्त से लवणसमुद्र में चार सौ योजन आगे जाने पर हयकर्ण द्वीप है । वह चार सौ योजनप्रमाण लम्बा-चौड़ा है और बारह सौ पैंसठ योजन से कुछ अधिक उसकी परिधि है । वह एक पद्मवरवेदिका से मण्डित है । शेष पूर्ववत् ।