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जीवाजीवाभिगम-३/देव/१५२
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| प्रतिपत्ति-३ “देवाधिकार" [१५२] देव के कितने प्रकार हैं ? चार प्रकार हैं, भवनवासी, वानव्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक ।
[१५३] भवनवासी देवों के कितने प्रकार हैं ? दस प्रकार के हैं, यथा-असुरकुमार आदि प्रज्ञापनासूत्र में कहे हुए देवों के भेद का कथन करना यावत् अनुत्तरोपपातिक देव पांच प्रकार के हैं, यथा-विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध ।
[१५४] हे भगवन् ! भवनवासी देवों के भवन कहाँ कहे गये हैं ? वे भवनवासी देव कहाँ रहते हैं ? हे गौतम ! रत्नप्रभा पृथ्वी के मध्यके एक लाख अठहत्तर हजार योजनप्रमाणक्षेत्र में भवनावास कहे गये हैं आदि वर्णन प्रज्ञापनासूत्र अनुसार जानना । वहाँ भवनवासी देवों के सात करोड़ बहत्तर लाख भवनावास हैं । उनमें बहुत से भवनवासी देव रहते हैं, यथाअसुरकुमार, आदि वर्णन प्रज्ञापनासूत्र अनुसार कहना यावत् दिव्य भोगों का उपभोग करते हुए विचरते हैं ।
[१५५] हे भगवन् ! असुरकुमार देवों के भवन कहाँ हैं ? गौतम ! प्रज्ञापना के स्थानपद अनुसार यहाँ समझना यावत् दिव्य-भोगों को भोगते हुए वे विचरण करते हैं । हे भगवन् ! दक्षिण दिशा के असुरकुमार देवों के भवनों के संबंध में प्रश्न है ? गौतम ! स्थानपद समानज्ञानना यावत् असुरकुमारों का इन्द्र चमर वहाँ दिव्य भोगों का उपभोग करता हुआ विचरता है ।
[१५६] हे भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की कितनी परिषदाएँ हैं ? गौतम ! तीन, समिता, चंडा और जाता । आभ्यन्तर पर्षदा समिता, मध्यम परिषदा चंडा और बाह्य परिषदा जाया कहलाती है । गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की आभ्यन्तर परिषदा में २४०००, मध्यम परिषदा में २८००० और बाह्य परिपदा में ३२००० देव हैं । हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की आभ्यन्तर परिषद् में साढे तीन सौ, मध्यम परिषद् में तीन सौ और बाह्य परिषद् में ढाई सौ देवियाँ हैं । हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की आभ्यन्तर परिषदा के देवों की स्थिति ढ़ाई पल्योपम, मध्यम पर्षदा के देवों की दो पल्योपम और बाह्य परिषदा के देवों की डेढ़ पल्योपम की स्थिति है । आभ्यन्तर पर्षदा की देवियों की डेढ़ पल्योपम, मध्यम परिषदा की देवियों की एक पल्योपम की और बाह्य परिषद् की देवियों की स्थिति आधे पल्योपम की है । हे भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि असुरेन्द्र असुरराज चमर की तीन पर्षदा हैं इत्यादि प्रश्न । गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की आभ्यन्तर परिषदा के देव बुलाये जाने पर आते हैं, बिना बुलाये नहीं आते । मध्यम परिषद् के देव बुलाने पर भी आते हैं और बिना बुलाये भी आते हैं । बाह्य परिषदा के देव बिना बुलाये आते हैं । गौतम ! दूसरा कारण यह है कि असुरेन्द्र असुरराज चमर किसी प्रकार के ऊँचे-नीचे, शोभन-अशोभन कौटुम्बिक कार्य आ पड़ने पर आभ्यन्तर परिषद् के साथ विचारणा करता है, उनकी सम्मति लेता है । मध्यम परिषदा को अपने निश्चित किये कार्य की सूचना देकर उन्हें स्पष्टता के साथ कारणादि समझाता है और बाह्य परिषदा को आज्ञा देता हुआ विचरता है । इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि असुरेन्द्र असुरराज चमर की तीन परिषदाएँ हैं ।