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________________ ६४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद डाले गये हैं, सुगंधित द्रव्यों से जो संस्कारित किया गया है, जो श्रेष्ठ वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श से युक्त होकर बल-वीर्य रूप में परिणत होता है, इन्द्रियों की शक्ति को बढ़ाने वाला है, भूखप्यास को शान्त करने वाला है, प्रधानरूप से गुड, शक्कर या मिश्री से युक्त किया हुआ है, गर्म किया हुआ घी डाला गया है, जिसका अन्दरूनी भाग एकदम मुलायम एवं स्निग्ध हो गया है, जो अत्यन्त प्रियकारी द्रव्यों से युक्त किया गया है, ऐसा परम आनन्ददायक परमान होता है, उस प्रकार वे चित्ररस नामक कल्पवृक्ष होते हैं । उन वृक्षों में यह सामग्री नाना प्रकार के वित्रसा परिणाम से होती है । यावत् श्री से अतीव सुशोभित होते हैं । हे आयुष्मन् श्रमण ! एकोरुक द्वीप में यहाँ-वहाँ बहुत से मण्यंग नामक कल्पवृक्ष हैं। जिसे प्रकार हार, अर्धहार, वेष्टनक, मुकुट, कुण्डल, वामोत्तक, हेमजालमणिजाल, सूत्रक, उच्चयित कटक, मुद्रिक, एकावली, कण्ठसूत्र, मकराकार आभूषण, उरः स्कन्ध ग्रैवेयक, श्रोणीसूत्र, चूडामणि, सोने का तिलक, बिंदिया, सिद्धार्थक, कर्णपाली, चन्द्र के आकार का भूषण, सूर्य के आकार का भूषण, वृषभ के आकार के, चक्र के आकार के भूषण, तल भंगक-त्रुटिक, मालाकार हस्ताभूषण, वलक्ष, दीनार की आकृति की मणिमाला, चन्द्र-सूर्यमालिका, हर्षक, केयूर, वलय, प्रालम्बनक, अंगुलीयक, काची, मेखला, कलाप, प्रतरक, प्रातिहारिक, पाँव में पहने जाने वाले धुंघरू, किंकणी रत्नमय कन्दौरा, नूपुर, चरणमाला, कनकनिकर माला आदि सोना-मणि-रत्न आदि की रचना से चित्रित और सुन्दर आभूषणों के प्रकार हैं उसी तरह वे मण्यंग वृक्ष यावत् अतीव शोभायमान हैं । हे आयुष्मन् श्रमण ! एकोरुक द्वीप में स्थान-स्थान पर बहुत से गेहाकार नाम के कल्पवृक्ष कहे गये हैं । जैसे-प्राकार, अट्टालक, चरिका, द्वार, गोपुर, प्रासाद, आकाशतल, मंडप, एक यावत् चार खण्ड वाले मकान गर्भगृह, मोहनगृह, वलभिघर, चित्रशाला से सज्जित प्रकोष्ठ गृह, भोजनालय, गोल, तिकोने, चौरस, नंदियावर्त आकार के गृह, पाण्डुर-तलमुण्डमाल, हर्म्य, अथवा धवल गृह, अर्धगृह-मागधगृह-विभ्रमगृह, पहाड़ के अर्धभाग जैसे आकार के, पहाड़ जैसे आकार के गृह, पर्वत के शिखर के आकार के गृह, सुविधिकोष्टक गृह, अनेक कोठों वाला गृह, शरणगृह शयनगृह आपणगृह, विडंग, जाली वाले घर निर्वृह, कमरों और द्वार वाले गृह और चाँदनी आदि से युक्त जो नाना प्रकार के भवन होते हैं, उसी प्रकार वे गेहाकार वृक्ष भी विविध प्रकार के बहुत से स्वाभाविक परिणाम से परिणत भवनों और गृहों से युक्त होते हैं । उन भवनों में सुखपूर्वक चढ़ा जा सकता है और सुखपूर्वक उतरा जा सकता है, उन भवनों के चढ़ाव के सोपान समीप-समीप हैं, विशाल होने से उनमें सुखरूप गमनागमन होता है और वे मन के अनुकूल होते हैं । ऐसे नाना प्रकार के भवनों से युक्त वे गेहाकार वृक्ष हैं । यावत् अतीव शोभित होते हैं । हे आयुष्मन् श्रमण ! उस एकोरुक द्वीप में जहाँ-तहाँ अनग्न नाम के कल्पवृक्ष हैं । जैसे–यहाँ नाना प्रकार के आजिनक-चर्मवस्त्र, क्षोम-कपास के वस्त्र, कंबल-ऊन के वस्त्र, दुकूल-मुलायम बारीक वस्त्र, कोशेय-रेशमी कीड़ों से निर्मित वस्त्र, काले मृग के चर्म से बने वस्त्र, चीनांशुकचीन देश में निर्मित वस्त्र, आभूषणों के द्वारा चित्रित वस्त्र, श्लक्ष्ण-बारीक तन्तुओं से निष्पन्न वस्त्र, कल्याणक वस्त्र, भंवरी नील और काजल जैसे वर्ण के वस्त्र, रंग-बिरंगे वस्त्र, लाल-पीले सफेद रंग के वस्त्र, स्निग्ध मृगरोम के वस्त्र, सोने चाँदी के तारों से बना वस्त्र, ऊपर-पश्चिम देश का बना वस्त्र, उत्तर देश का बना वस्त्र, सिन्धु-ऋषभ-तामिल बंग-कलिंग
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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