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जीवाजीवाभिगम-३/मनुष्य/१४५
देशों में बना हुआ सूक्ष्म तन्तुमय बारीक वस्त्र, इत्यादि नाना प्रकार के वस्त्र हैं जो श्रेष्ठ नगरों में कुशल कारीगरों से बनाये जाते हैं, सुन्दर वर्ण-रंग वाले हैं-उसी प्रकार वे अनग्न वृक्ष भी अनेक और बहुत प्रकार के स्वाभाविक परिणाम से परिणत विविध वस्त्रों से युक्त हैं । यावत् श्री से अतीव अतीव शोभायमान हैं । हे भगवन् ! एकोरुकद्वीप में मनुष्यों का आकारप्रकारादि स्वरूप कैसा है ? हे गौतम ! वे मनुष्य अनुपम सौम्य और सुन्दर रूप वाले हैं । उत्तम भोगों के सूचक लक्षणों वाले हैं, भोगजन्य शोभा से युक्त हैं । उनके अंग जन्म से ही श्रेष्ठ और सर्वांग सुन्दर हैं । उनके पांव सुप्रतिष्ठित और कछुए की तरह सुन्दर हैं, उनके पांवों के तल लाल और उत्पल के पत्ते के समान मृदु, मुलायम और कोमल हैं, उनके चरणों में पर्वत, नगर, समुद्र, मगर, चक्र, चन्द्रमा आदि के चिह्न हैं, उनके चरणों की अंगुलियाँ क्रमशः बड़ी छोटी और मिली हुई हैं उनकी अंगुलियों के नख उन्नत पतले ताम्रवर्ण के व स्निग्ध हैं।
उनके गुल्फ संस्थित घने और गूढ हैं, हरिणी और कुरविंद की तरह उनकी पिण्डलियां क्रमशः स्थूल-स्थूलतर और गोल हैं, उनके घुटने संपुट में रखे हुए की तरह गूढ हैं, उनकी जांधे हाथी की सूंड की तरह सुन्दर, गोल और पुष्ट हैं, श्रेष्ठ मदोन्मत्त हाथी की चाल की तरह उनकी चाल है, श्रेष्ठ घोड़े की तरह उनका गुह्यदेश सुगुप्त है, आकीर्णक अश्व की तरह मलमूत्रादि के लेप से रहित है, उनकी कमर यौवनप्राप्त श्रेष्ठ घोड़े और सिंह की कमर जैसी पतली और गोल है, जैसे संकुचित की गई तिपाई, मूसल दर्पण का दण्डा और शुद्ध किये हुए सोने की मूंठ बीच में से पतले होते हैं उसी तरह उनकी कटि पतली है, उनकी रोमराजि सरल-समसघन-सुन्दर-श्रेष्ठ, पतली, काली, स्निग्ध, आदेय, लावण्यमय, सुकुमार, सुकोमल और रमणीय है, उनकी नाभि गंगा के आवर्त की तरह दक्षिणावर्त तरंग की तरह वक्र और सूर्य की उगती किरणों से खिले हुए कमल की तरह गंभीर और विशाल है । उनकी कुक्षि मत्स्य और पक्षी की तरह सुन्दर और पुष्ट है, उनका पेट मछली की तरह कृश है ।
उनकी इन्द्रियां पवित्र हैं, इनकी नाभि कमल के समान विशाल है, इनके पार्श्वभाग नीचे नमे हुए हैं, प्रमाणोपेत हैं, सुन्दर हैं, जन्म से सुन्दर हैं, परिमित मात्रा युक्त, स्थूल और आनन्द देने वाले हैं, पीठ की हड्डी मांसल होने से अनुपलक्षित होती है, शरीर कञ्चन की तरह कांति वाले निर्मल सुन्दर और निरुपहत होते हैं, वे शुभ बत्तीस लक्षणों से युक्त होते हैं, वक्षःस्थल कञ्चन की शिलातल जैसा उज्ज्वल, प्रशस्त, समतल, पुष्ट, विस्तीर्ण और मोटा होता है, छाती पर श्रीवत्स का चिह्न अंकित होता है, उनकी भुजा नगर की अर्गला के समान लम्बी होती है, बाहु शेषनाग के विपुल-लम्बे शरीर तथा उठाई हुई अर्गला के समान लम्बे होते हैं । हाथों की कलाइयां जूए के समान दृढ, आनन्द देने वाली, पुष्ट, सुस्थित, सुश्लिष्ट, विशिष्ट, घन, स्थिर, सुबद्ध और निगूढ पर्वसन्धियों वाली हैं ।
उनकी हथेलियां लाल वर्ण की, पुष्ट, कोमल, मांसल, प्रशस्त लक्षणयुक्त, सुन्दर और छिद्र जाल रहित अंगुलियाँ वाली हैं । उनके हाथों की अंगुलियाँ पुष्ट, गोल, सुजात और कोमल हैं । उनके नख ताम्रवर्ण के, पतले, स्वच्छ, मनोहर और स्निग्ध होते हैं । हाथों में चन्द्ररेखा, सूर्यरेखा, शंखरेखा, चक्ररेखा, दक्षिणावर्त स्वस्तिकरेखा, चन्द्र-सूर्य-शंख-चक्रदक्षिणावर्तस्वस्तिक की मिलीजुली रेखाएँ होती हैं । अनेक श्रेष्ठ, लक्षण युक्त उत्तम, प्रशस्त, स्वच्छ, आनन्दप्रद रेखाओं से युक्त उनके हाथ हैं । स्कंध श्रेष्ठ भैंस, वराह, सिंह, शार्दूल, बैल 75