________________
जीवाजीवाभिगम-३/मनुष्य/१४५
जिनका प्रकाशमण्डल सब ओर फैला होता है तथा जिनमें बहुत सारी बत्तियाँ और भरपूर तैल भरा होता है, जो अपने घने प्रकाश से अन्धकार का मर्दन करती हैं, जिनका प्रकाश कनकनिका जैसे प्रकाश वाले कुसुमों से युक्त पारिजात के वन के प्रकाश जैसा होता है सोना मणिरत्न से बने हुए, विमल, बहुमूल्य या महोत्सवों पर स्थापित करने योग्य, तपनीय और विचित्र जिनके दण्ड हैं, जिन दण्डों पर एक साथ प्रज्वलित, बत्ती को उकेर कर अधिक प्रकाश वाली किये जाने से जिनका तेज खूब प्रदीप्त हो रहा है तथा जो निर्मल ग्रहगणों की तरह प्रभासित हैं तथा जो अन्धकार को दूर करने वाले सूर्य की फैली हई प्रभा जैसी चमकीली हैं, जो अपनी उज्ज्वल ज्वाला से मानो हँस रही हैं ऐसी वे दीपिकाएँ शोभित होती हैं वैसे ही वे दीपशिखा नामक वृक्ष भी अनेक और विविध प्रकार के विस्रसा परिणाम वाली उद्योतविधि से युक्त हैं। वे फलों से पूर्ण हैं, विकसित हैं, यावत् वे श्री से अतीव अतीव शोभायमान हैं।
हे आयुष्मन् श्रमण ! एकोरुक द्वीप में जहाँ-तहाँ बहुत से ज्योतिशिखा नाम के कल्पवृक्ष हैं । जैसे तत्काल उदित हुआ शरत्कालीन सूर्यमण्डल, गिरती हुई हजार उल्काएँ, चमकती हुई बिजली, ज्वालासहित निधूम प्रदीप्त अग्नि, अग्नि से शुद्ध हुआ तप्त तपनीय स्वर्ण, विकसित हुए किंशुक के फूलों, अशोकपुष्पों और जपा-पुष्पों का समूह, मणिरत्न की किरणें, श्रेष्ठ हिंगलू का समुदाय अपने-अपने वर्ण एवं आभारूप से तेजस्वी लगते हैं, वैसे ही वे ज्योतिशिखा कल्पवृक्ष अपने बहुत प्रकार के अनेक विस्रसा परिणाम से उद्योत विधि से युक्त होते हैं । उनका प्रकाश सुखकारी है, तीक्ष्ण न होकर मंद है, उनका आताप तीव्र नहीं है, जैसे पर्वत के शिखर एक स्थान पर रहते हैं, वैसे ये अपने ही स्थान पर स्थित होते हैं, एक दूसरे से मिश्रित अपने प्रकाश द्वारा ये अपने प्रदेश में रहे हुए पदार्थों को सब तरफ से प्रकाशित करते हैं, उद्योतित करते हैं, प्रभासित करते हैं । यावत् श्री से अतीव शोभायमान हैं ।
हे आयुष्मन् श्रमण ! उस एकोरुक द्वीप में यहाँ वहाँ बहुत सारे चित्रांग नाम के कल्पवृक्ष हैं । जैसे कोई प्रेक्षाघर नाना प्रकार के चित्रों से चित्रित, रम्य, श्रेष्ठ फूलों की मालाओं से उज्ज्वल, विकसित-प्रकाशित बिखरे हुए पुष्प-पुंजों से सुन्दर, विरल-पृथक्-पृथक् रूप से स्थापित हुई एवं विविध प्रकार की गूंथी हुई मालाओं की शोभा के प्रकर्ष से अतीव मनमोहक होता है, ग्रथित-वेष्टित-पूरित-संघातिम मालाएं जो चतुर कलाकारों द्वारा गूंथी गई हैं उन्हें बड़ी ही चतुराई के साथ सजाकर सब ओर रखी जाने से जिसका सौन्दर्य बढ़ गया है, अलग अलग रूप से दूर दूर लटकती हुई पांच वर्णों वाली फूलमालाओं से जो सजाया गया हो तथा अग्रभाग में लटकाई गई वनमाला से जो दीप्तिमान हो रहा हो ऐसे-प्रेक्षागृह के समान वे चित्रांग कल्पवृक्ष भी अनेक-बहुत और विविध प्रकार के विस्रसा परिणाम से माल्यविधि से युक्त हैं । यावत् श्री से अतीव सुशोभित हैं ।
___हे आयुष्मन् श्रमण ! उस एकोरुक द्वीप में जहाँ-तहाँ बहुत सारे चित्ररस नाम के कल्पवृक्ष हैं । जैसे सुगन्धित श्रेष्ठ कलम जाति के चावल और विशेष प्रकार की गाय से निसृत दोष रहित शुद्ध दूध से पकाया हुआ, शरद ऋतु के घी-गुड-शक्कर और मधु से मिश्रित अति स्वादिष्ट और उत्तम वर्ण-गंध वाला परमात्र निष्पन्न किया जाता है, अथवा जैसे चक्रवर्ती राजा के कुशल सूपकारों द्वारा निष्पादित चार उकालों से सिका हुआ, कलम जाति के ओदन जिनका एक-एक दाना वाष्प से सीझ कर मृदु हो गया है, जिसमें अनेक प्रकार के मेवा-मसाले