SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद बत्तीस हजार योजन बाहल्य वाली शर्कराप्रभा पृथ्वी में पूर्व विशेषणों से विशिष्ट द्रव्य यावत् परस्पर सम्बद्ध हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं । इसी तरह बीस हजार योजन वाहल्य वाले घनोदधि, असंख्यात हजार योजन बाहल्य वाले घनवात और आकाश के विषय में भी समझना । शर्कराप्रभा की तरह इसी क्रम से सप्तम पृथ्वी तक समझना । [८८] हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का आकार कैसा है ? गौतम ! झालर के आकार का है । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के खरकांड का कैसा आकार है ? गौतम ! झालर के आकार का है । इसी प्रकार रिष्टकाण्ड तक कहना । इसी तरह पंकबहुलकांड, अप्बहुलकांड, घनोदधि, घनवात, तनुवात और अवकाशान्तर भी सब झालर के आकार के हैं । भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी का आकार कैसा है ? गौतम ! झालर के आकार का है । इसी प्रकार अवकाशान्तर तक कहना । शर्कराप्रभा की वक्तव्यता के अनुसार शेष पृथ्वियों की वक्तव्यता जाननी चाहिए । [८९] हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वदिशा के उपरिमान्त से कितने अपान्तराल के बाद लोकान्त कहा गया है ? गौतम ! बारह योजन के बाद । इसी प्रकार दक्षिण, पश्चिम और उत्तरदिशा के उपरिमान्त से बारह योजन अपान्तराल के बाद लोकान्त कहा गया है । शर्कराप्रभा पृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमांत से त्रिभाग कम तेरह योजन के अपान्तराल के बाद का है । इसी प्रकार चारों दिसाओं को कहना । वालुकाप्रभा पृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमांत से विभाग सहित तेरह योजन के अपान्तराल बाद लोकान्त है । इस प्रकार चारों दिशाओं को कहना | पंकप्रभा में चौदह योजन, धूमप्रभा में त्रिभाग कम पन्द्रह योजन, तमप्रभा में त्रिभाग सहित पन्द्रह योजन और सातवीं पृथ्वी में सोलह योजन के अपान्तराल के बाद लोकान्त कहा गया है । इसी प्रकार उत्तरदिशा के चरमान्त तक जानना । ४४ हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वदिसा का चरमान्त कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का, घनोदधिवलय, घनवातवलय और तनुवातवलय । इसी प्रकार उत्तरदिशा के चरमान्त तक कहना चाहिए । इसी प्रकार सातवीं पृथ्वी तक की सब पृथ्वियों के उत्तरी चरमान्त तक सब दिशाओं के चरमान्तों के प्रकार कहना । [१०] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृत्वी का घनोदधिवलय कितना मोटा है ? गौतम ! छह योजन, शर्कराप्रभापृथ्वी का घनोदधिवलय त्रिभागसहित छह योजन मोटा है । बालुकाप्रभा त्रिभागन्यून सात योजन का है । पंकप्रभा का घनोदधिवलय सात योजन का, धूमप्रभा का त्रिभागसहित सात योजन का, तमः प्रभा का त्रिभागन्यून आठ योजन का और तमस्तमः प्रभा का आठ योजन का है । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का घनवातवलय कितनी मोटाई वाला है ? गौतम ! साढ़े चार योजन का मोटा है । शर्कराप्रभा का एक कोस कम पांच योजन, वालुकाप्रभा का पांच योजन का, पंकप्रभा का एक कोस अधिक पांच योजन का, धूमप्रभा का साढ़े पांच योजन का और तमस्तमः प्रभापृथ्वी का एक कोस कम छह योजन का बाहल्य है । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का तनुवातवलय कितनी मोटाई वाला कहा गया है ? गौतम ! छह कोस, शर्कराप्रभा का त्रिभागसहित छह कोस, बालुकाप्रभा का त्रिभागन्यून सात कोस, पंकप्रभा का सात कोस, धूमप्रभा का त्रिभागसहित सात कोस का, तमः प्रभा का I
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy