________________
जीवाजीवाभिगम-३/ नैर. - १/८२
४३
[८२] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में कितने लाख नरकवास हैं ? गौतम ! तीस लाख । [८३] प्रथम पृथ्वी में तीस लाख, दूसरी में पच्चीस लाख, तीसरी में पन्द्रह लाख, चौथी में दसलाख, पांचवीं में तीनलाख, छठी में पांच कम एक लाख और सातवीं पृथ्वी में पांच अनुत्तर महानरकावास हैं ।
[४] अधः सप्तमपृथ्वी में महानरकावास पांच हैं, यथा-काल, महाकाल, रौरव, महारौव और अप्रतिष्ठान ।
[८५] हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे घनोदधि है, घनवात है, तनुवात है और शुद्ध आकाश है क्या ? हाँ गौतम ! है ! इसी प्रकार सातों पृथ्वियों में जानना ।
[८६] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी का खरकाण्ड कितनी मोटाई वाला है ? गौतम ! सोलह हजार योजन की मोटाई वाला रत्नकाण्ड एक हजार योजन की मोटाई वाला है । इसी प्रकार रिष्टकाण्ड तक की मोटाई जानना । इस रत्नप्रभापृथ्वी का पंकबहुल कांड चौरासी हजार योजन की मोटाई वाला है, अप्बहुलकाण्ड अस्सी हजार योजन की मोटाई का, घनोदधि बीस हजार योजन की मोटाई का, घनवात असंख्यात हजार योजन का मोटा, इसी प्रकार तनुवात भी और आकाश भी असंख्यात हजार योजन की मोटाई वाले हैं ।
भगवन् ! शर्कराप्रभापृथ्वी का घनोदधि कितना मोटा है ? गौतम ! बीस हजार योजन का है । शर्कराप्रभा का घनवात असंख्यात हजार योजन की मोटाई वाला है । जैसी शर्कराप्रभा के घनोदधि, घनवात, तनुवात और आकाश की मोटाई कही है, वही शेष सब पृथ्वियों की
जानना ।
[८७] भगवन् ! एक लाख अस्सी हजार योजन बाहल्य वाली और प्रतर - काण्डादि रूप में विभक्त इस रत्नप्रभा पृथ्वी में वर्ण से काले- नीले-लाल-पीले और सफेद, गंध से सुरभिगंध वाले और दुर्गन्ध वाले, रस से तिक्त कटुक- कसैले खट्टे-मीठे तथा स्पर्श से कठोर - कोमलभारी- हल्के-शीत-उष्ण-स्निग्ध और रूक्ष, संस्थान से परिमंडल, वृत्त, त्रिकोण, चतुष्कोण और आयात रूप में परिणत द्रव्य एक-दूसरे से बँधे हुए, एक दूसरे से स्पृष्ट- हुए, एक दूसरे में अवगाढ़, एक दूसरे से स्नेह द्वारा प्रतिबद्ध और एक दूसरे से सम्बद्ध हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के सोलह हजार योजन बाहल्य वाले और बुद्धि द्वारा प्रतरादि रूप में विभक्त खरकांड में वर्ण-गंध-रस-स्पर्श और संस्थान रूप में परिणत द्रव्य यावत् एक दूसरे से सम्बद्ध हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं । हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के एक हजार योजन बाहल्य वाले और प्रतरादि रूप में बुद्धिद्वारा विभक्त रत्न नामक काण्ड में पूर्व विशेषणों से विशिष्ट द्रव्य हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं । इसी प्रकार रिष्ट नामक काण्ड तक कहना । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के पंकबहुल काण्ड में जो चौरासी हजार योजन बाहल्य वाला और बुद्धि द्वारा प्रतरादि रूप में विभक्त है, ( उसमें) पूर्ववर्णित द्रव्यादि हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं । इसी प्रकार अस्सी हजार योजन बाहल्य वाले अपबहुल काण्ड में भी पूर्वविशिष्ट द्रव्यादि हैं । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के बीस हजार योजन बाहल्य वाले घनोदधि में पूर्व विशेषण वाले द्रव्य हैं ? हाँ, गौतम ! हैं । इसी प्रकार असंख्यात हजार योजन बाहल्य वाले घनवात और तनुवात में तथा आकाश में भी उसी प्रकार द्रव्य हैं । हे भगवन् ! एक लाख